सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

= निष्कर्म पतिव्रता का अंग =(८/७१-७३)

॥दादूराम सत्यराम॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= निष्कर्म पतिव्रता का अंग ८ =*
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*दादू सींचे मूल के, सब सींच्या विस्तार ।*
*दादू सींचे मूल बिन, बाद गई बेगार ॥७१॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! अनन्य पतिव्रत - धर्म को धारण करने वाले जो भक्त सबका मूल कारण ईश्वर को जानकर उसकी आराधना में लगे हैं, उनकी आराधना विस्तार को प्राप्त होती है अर्थात् परमात्मा रूप ही उनको बना देती है । और जो संसारीजन ईश्वर को छोड़कर अन्य सकाम - कर्म रूप साधनों के द्वारा दूसरी उपासना करते हैं, उनकी वह साधना व्यर्थ ही नष्ट हो जाती है और उनको यथार्थ लाभ प्राप्त नहीं होता ॥७१॥ 
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*सब आया उस एक में, डाल पान फल फूल ।*
*दादू पीछे क्या रह्या, जब निज पकड्या मूल ॥७२॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जैसे वृक्ष के मूल को सींचने से समस्त डाल, पान, फल, फूल आदि का स्वतः ही पोषण होता है, इसी प्रकार आत्मा रूप परमात्मा का अनुभव होने से मनुष्य जीवन के समस्त कर्तव्य सफल हो जाते हैं ॥७२॥ 
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*खेत न निपजै बीज बिन, जल सींचे क्या होइ ।*
*सब निष्फल दादू राम बिन, जानत है सब कोइ ॥७३॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! खेत में बीज नहीं डालने से फसल प्राप्त नहीं कर सकते, कितना ही पानी क्यों न सींचें । इसी प्रकार अन्तःकरण रूपी खेत में जब तक गुरु उपदेश रूपी बीज नहीं डालें, तब तक राम की भक्ति के बिना संसारीजनों को मोक्ष रूपी फल प्राप्त नहीं होता । इस बात को सभी तत्ववेत्ता पुरुष समझते हैं । इसलिए गुरुदेव का उपदेश रूपी बीज अन्तःकरण में डालिये यानी धारण करिये ॥७३॥ 
बहुत बार भू बाइये, जल सींचे सत बार । 
तामें बीज न बोइये, क्या लूणेगा गँवार ॥ 
बीज रूप हरि भक्ति है, सो तो तुम्हरे नाहिं । 
घणी सहोगे सासनां, जम की दरगह माहिं ॥ 
(क्रमशः)

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