बुधवार, 27 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(११५/११७)


॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*पुरुष प्रकाशक*
*दादू जिस घट दीपक राम का, तिस घट तिमिर न होइ ।*
*उस उजियारे ज्योति के, सब जग देखै सोइ ॥११५॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जिन उत्तम पुरुषों को आत्मा का साक्षात्कार हुआ है, उन मुक्त - पुरुषों के अन्तःकरण में मायाकृत अविद्या का अन्धकार नहीं रहता है और वे मुक्तजन ब्रह्मज्ञान ज्योति के उजियारे कहिये, अनुभव द्वारा सम्पूर्ण संसार को ब्रह्म का ही प्रतिबिम्ब रूप अनुभव करते हैं अथवा सम्पूर्ण जगत् उन आत्मानुभवी संतों का दर्शन करके अपने को पवित्र बनाते हैं ॥११५॥ 
तिमिर रहै घर दीप बिन, दीप उदै नहिं पाइ । 
‘जगन’ जगतपति ज्ञान तैं, माया-तम न रहाइ ॥ 
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*माया*
*दादू जेहि घट ब्रह्म न प्रकटै, तहँ माया मंगल गाइ ।*
*दादू जागै ज्योति जब, तब माया भ्रम विलाइ ॥११६॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जिस अन्तःकरण में माया का ही मंगलाचार होवे, उस जगह ब्रह्म का ज्ञान प्रगट नहीं होता है । इसलिए माया - प्रपंच को भ्रमरूप मिथ्या जानकर, आत्मा का बोध करने से ही, ब्रह्म अनुभव रूपी ज्योति का प्रकाश होता है ॥११६॥ 
सूर उदै रजनी नहीं, प्रसिद्घ सारे बात । 
ब्रह्म ज्ञान, माया नसै, बुध भाषैं ‘जगन्नाथ’ ॥ 
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*पति पहचान*
*दादू जोति चमकै तिरवरे, दीपक देखै लोइ ।*
*चन्द सूर का चान्दणा, पगार छलावा होइ ॥११७॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह माया ज्योतिरूप से चमके और तिरवरे रूप जैसी लौ, चन्द्रमा और सूर्य जैसा प्रकाश, ‘पगार’ कहिए पीले बादलों जैसा चमकीला रूप, छलावा जैसा स्वरूप बनाकर परमेश्‍वर के भक्तों को छलने आती है, परन्तु परमेश्‍वर के अनन्य भक्त, इसको माया जान कर इसके छल-कपट से मुक्त रहते हैं और परमेश्‍वर को ही भजते हैं ॥११७॥ 
सात चरित्र माया किये, गुरु दादू ढिंग आइ ।
तासन या साखी कही, गई चरण सिर नाइ ॥ 
दृष्टान्त - करड़ाला में माया सात रूप बनाकर ब्रह्मऋषि के पास छलने को आई । ब्रह्मऋषि माया के छलावे में नहीं आये, तब माया नत मस्तक होकर अर्थात् नमस्कार करके चली गई ।
(क्रमशः)

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