गुरुवार, 30 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(९०/९२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साधु का अंग १५ =*
*साधु शब्द सुख वर्षहि, शीतल होइ शरीर ।*
*दादू अन्तर आत्मा, पीवे हरि जल नीर ॥९०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मुक्त ब्रह्मवेत्ता संतों की वाणी द्वारा आत्मा आनन्द की वृष्टि होती है तथा सच्चे और शुद्ध व्यवहार की भी वृष्टि होती है । और फिर जिज्ञासुओं की बुद्धि व्यवहार में दक्ष होकर आत्म - परायण कहिए निष्काम स्मरण करके ब्रह्मानन्द में मग्न रहती है ॥९०॥ 
*साधु लक्षण* 
*साधु सदा संयम रहै, मैला कदे न होइ ।* 
*दादू पंक परसै नहीं, कर्म न लागै कोइ ॥९१॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम के सच्चे भक्त - संत सदैव निर्वासनिक होते हैं । उनको पाप रूपी कीचड़ स्पर्श नहीं करता है और कर्मों के बन्धन से भी वे मुक्त रहते हैं, क्योंकि निष्काम राम का स्मरण करके वे फिर रामरूप हो गये हैं ॥९१॥ 
*साध सदा संयम रहै, मैला कदे न होइ ।* 
*शून्य सरोवर हंसला, दादू विरला कोइ ॥९२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वह सच्चे संत मुक्त पुरुष, निर्विकल्प ब्रह्मानन्द रूप सरोवर के हंस, इस संसार में कोई बिरले ही होते हैं । उनका दर्शन और सत्संग, जीवों को भाग्य से ही प्राप्त होता है ॥९२॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें