शनिवार, 1 जून 2013

= साधु का अंग १५ =(९९/१००)


॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
*= साधु का अंग १५ =* 
*दादू सब जग फटिक पाषाण है, साधु सैंधव होइ ।* 
*सैंधव एकै ह्वै रह्या, पानी पत्थर दोइ ॥९९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सम्पूर्ण जगत् के अज्ञानी, विषयी, पामर, सकामी पुरुष, विलौरी पत्थर के समान आपा अहंकार सहित हैं, और तत्त्ववेत्ता मुक्त - पुरुष, अनात्म, आपा अहंकार से रहित हैं सैंधव नमक के समान । वे परमात्मा का स्मरण करते - करते परमात्मा रूप हो जाते हैं । और उपरोक्त अज्ञानी, भेदवादी संसारीजन पानी - पत्थर की तरह परमात्मा से अलग ही जन्म - जन्मान्तरों में भ्रमते रहते हैं ॥९९॥ 
*साधु परमार्थी* 
*को साधु जन उस देश का, आया इहि संसार ।* 
*दादू उसको पूछिये, प्रीतम के समाचार ॥१००॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्म - देश से कोई मुक्त - पुरुष ब्रह्मवेत्ता, इस संसार में जीवों के कल्याण अर्थ आये हैं, उनको प्रीतम प्यारे परमेश्‍वर से मिलने के साधन रूप समाचार पूछिये । वे मुक्त - पुरुष, उत्तम साधकों को आत्म - उपदेश देकर परमात्मा के सन्मुख करेंगे ॥१००॥
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*दादू दत्त दरबार का, को साधु बांटै आइ ।*
*तहाँ राम रस पाइये, जहँ साधु तहँ जाइ ॥१०१॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमात्मा के दरबार का ज्ञान - ध्यान - आत्म - उपदेश रूपी धन, कोई ब्रह्मवेत्ता पुरुष ही जीवों का कल्याण करने को इस संसार में आकर बांटते हैं अर्थात् आत्म - उपदेश करते हैं । उत्तम जिज्ञासु उनकी शरण में जाकर आत्म उपदेश का सम्पादन करते हैं ॥१०१॥ 
(क्रमशः)

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