बुधवार, 19 जून 2013

= मध्य का अंग १६ =(४६/४८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= मध्य का अंग १६ =*
.
*दादू ना हम हिन्दू होहिंगे, ना हम मुसलमान ।*
*षट् दर्शन में हम नहीं, हम राते रहमान ॥४६॥* 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरु महाराज कहते हैं कि न तो हम हिन्दुओं के मन्दिर मार्गी पक्ष में बँधेंगे और मुसलमान हम हैं नहीं । और छः दर्शनों के धर्म - पक्ष में भी हम नहीं हैं । हम तो केवल एक रहमान, परमात्मा में ही रत्त हैं ॥४६॥ 
ना हम हिन्दू ना तुरक, ना हम इत्त न उत्त । 
हम निर्पष निर्मल भगत, जगजीवन ये सत्त ॥ 
*जोगी जंगम सेवड़े, बौद्ध सन्यासी शेख ।* 
*षट् दर्शन दादू राम बिन, सबै कपट के भेख ॥४७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जोगी हैं, जंगम हैं, बौद्ध हैं, सेवड़े हैं, सन्यासी हैं, शेख हैं, ये छः दर्शन निष्काम राम की भक्ति के बिना सभी कपट के चिन्ह हैं । अर्थात् आत्म - ज्ञानी सभी संतों का उपास्य देव एक ब्रह्म तत्त्व ही है । वे उसी में मस्त रहते हैं । 
*दादू अल्लाह राम का, द्वै पख तैं न्यारा ।* 
*रहिता गुण आकार का, सो गुरु हमारा ॥४८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अल्लाह और राम, इन दोनों पक्षों के मत से अलग और मायावी आकार के गुणों से रहित ‘अद्वैत’ ब्रह्म है । उसकी ज्ञान रूप प्रेरणा ही हमारा गुरु है और शरीर अध्यास से रहित, गुणातीत हुये जो संत हैं, वे ही हमारे परम पूज्य हैं ॥४८॥ 
राम राम हिन्दू कहैं, तुर्क रहीम रहीम । 
जगन्नाथ दोऊ नाम का, पावै मरम फहीम ॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें