॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= मध्य का अंग १६ =*
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*उभय असमाव*
*दादू मेरा तेरा बावरे, मैं तैं की तज बान ।*
*जिन यहु सब कुछ सिरजिया, करता ही का जान ॥४९॥*
टीका ~ हे अज्ञानी जिज्ञासु ! जिस दयालु प्रभु ने सम्पूर्ण सृष्टि रची है, यह सब उसी की करके मान और सब रूप में परमेश्वर की ही सत्ता जानकर मेरे तेरे का द्वैतभाव छोड़ दे ॥४९॥
जाके उर तैं उठि गई, ‘मैं’ ‘तैं’ बड़ी बलाइ ।
तुलसी ताके भाग की, मोपै कही न जाइ ॥
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*दादू करणी हिन्दू तुरक की, अपनी अपनी ठौर ।*
*दुहुं बिच मारग साधु का, यहु संतों की रह और ॥५०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हिन्दूओं की करणी राम को मंदिर में मानते हैं और प्राणी मात्र पर दया करते हैं । मुसलमान मस्जिद में अल्लाह को मानकर कुर्बानी आदि में विश्वास करते हैं । परन्तु सच्चे निष्पक्ष संतों का मार्ग, मध्य मार्ग है, अर्थात् वे ब्रह्म की सर्व व्यापकता को मानकर सर्व रूपों में परमेश्वर को देखते हैं । यही मुक्त - पुरुषों का सत्य मार्ग है ॥५०॥
हिन्दू हर्षत हरि कहैं, तुर्क खुदाइ संभाल ।
जगन्नाथ उलटी बुरी, लागत दुहुँ को काल ॥
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*दादू हिन्दू तुरक का, द्वै पख पंथ निवार ।*
*संगति साचे साधु की, सांई को संभार ॥५१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हिन्दू और मुसलमान, इन दोनों के पक्षपातों के सिद्धान्त का त्याग कर और सच्चे निष्पक्ष संतों के सत्संग द्वारा परमेश्वर का स्मरण कर ॥५१॥
रज्जब हिन्दू तुरक तजि, सुमिरहु सिरजनहार ।
पखा - पखी सों प्रीत कर, कौन पहुंच्या पार ॥
(क्रमशः)
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