शुक्रवार, 7 जून 2013

= साधु का अंग १५ =(१२३/१२४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*बंध्या मुक्ता कर लिया, उरभ्या सुरझ समान ।*
*बैरी मिंता कर लिया, दादू उत्तम ज्ञान ॥१२३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मुक्त - पुरुष संसार के अन्दर बंधे हुए प्राणियों को अपने उपदेशों द्वारा मुक्त कर देते हैं । देहाध्यास में उलझे हुओं को देह - अध्यास रहित संत की तरह बना देते हैं । अन्तःकरण में शत्रु - भावना को बदलकर आत्म - उपदेश से सबके मित्र बना देते हैं । यह मुक्त पुरुषों का उत्तम ज्ञान है ॥१२३॥ 
*झूठा साचा कर लिया, काँचा कंचन सार ।* 
*मैला निर्मल कर लिया, दादू ज्ञान विचार ॥१२४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर से झूठे सांसारिक प्राणियों को मुक्त - पुरुषों ने राम - नाम का स्मरण कराकर परमेश्‍वर से सच्चे बना दिया । जो साधनों में कच्चे थे, उनको साधनों का उपदेश देकर कंचन के समान शुद्ध कर दिया । पापों से मैले थे, उनको राम - नाम स्मरण के उपदेश द्वारा निर्मल बना दिया । फिर वे उन्हीं संतों के विचार रूप ज्ञान को सम्पादन करने लगते हैं ॥१२४॥ 
हरिगीतिका ~ 
यह भक्त मीरा और अंगद, जहर अमृत कर लिया । 
प्रहलाद पावक नीर करके, सुमरिया अपना पिया ॥ 
पृथ्वीपति जु चंद गोपी, मिली जलधर सीझिया । 
नाथ गोरख लाल खोरी, कृष्ण कुब्जा को किया ॥ 
सिद्ध नागा नाथ तुलसी, मछंदर गोरख मिले । 
ऋषि नारद नृप विरही, चिमन वीसव जू मिले ॥ 
भक्त घाटम कनक पर्वत, नाथ गोरख ने किया । 
सकल साध सुधार आतम, दास हरि दरसन दिया ॥ 
(क्रमशः)

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