॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= मध्य का अंग १६ =*
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*दादू पंथों पड़ गये, बपुरे बारह बाट ।*
*इनके संग न जाइये, उलटा अविगत घाट ॥७२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक अज्ञानीजन, बपु आरामी, देह अध्यासी, वासनाओं के वश होकर, नाना सम्प्रदाय, मत - मतान्तरों में उलझ रहे हैं । वे बहिरंग साधनों में ही पच - पच कर मर जाते हैं । हे साधक ! उनका संग नहीं करना, बल्कि उनके संग से अपने मन इन्द्रियों को लौटा कर अव्यक्त परमेश्वर में लगाना ॥७२॥
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*आशय विश्राम*
*दादू जागे को आया कहैं, सूते को कहैं जाइ ।*
*आवन जाना झूठ है, जहॉं का तहॉं समाइ ॥७३॥*
इति मध्य का अंग सम्पूर्ण ॥अंग १६॥साखी ७३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक अज्ञानीजन, चैतन्य आत्मा के द्वारा प्राणों में जागृति आवे तो साधारण मनुष्य उसको ‘जाग आया’ कहते हैं अर्थात् जन्म मानते हैं और सूते कहिए, प्राण और स्थूल शरीर का वियोग होने पर, जीव को ‘सो गया’ कहिए, मृत्यु मानते हैं । परन्तु तत्ववेत्ता पुरुषों की दृष्टि में यह बात मिथ्या है । किन्तु यह जीव गुरु आज्ञा बिना, अविद्या से अविद्या में ही समा कर रहता है । अथवा जब यह प्राणधारी, सतगुरु के ज्ञान उपदेश से जागकर आत्मा में स्थिर होवे तो, इस मनुष्य शरीर में आना इसका सार्थक है । सूते कहिए, अज्ञानी लोग जो माया में मोहित हैं, उनका मनुष्य शरीर वृथा ही जाता है । इस प्रकार से संसार का आवागमन मिथ्या है, क्योंकि ब्रह्मवेत्ता संत तो मुक्त होते हैं और अज्ञानीजन संसार - बन्धन में समाते हैं । जब ब्रह्मवेत्ता संतों का समाधि से उत्थान होता है तो उस समय संतों का आगमन कहलाता है और जब ब्रह्माकार समाधि लगती है तो जाना मानते हैं । परन्तु ब्रह्मवेत्ता संतों का संसार की तरह आना - जाना मिथ्या है । वे तो अखंड वृत्ति से ब्रह्म में ही समाये रहते हैं ॥७३॥
इति मध्य का अंग टीका सहित सम्पूर्ण ॥अंग १६॥साखी ७३॥
(क्रमशः)
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