शुक्रवार, 14 जून 2013

= मध्य का अंग १६ =(२५/२७)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= मध्य का अंग १६ =*
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*चलु दादू तहँ जाइये, माया मोह तैं दूर ।*
*सुख दुख को व्यापै नहीं, अविनासी घर पूर ॥२५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो ब्रह्म माया प्रपंच से रहित है और निर्मल है और सुख - दुःख से रहित है, उसी में नित्य अनित्य के विचार द्वारा निश्‍चय करना ॥२५॥ 
*चलु दादू तहँ जाइये, जहँ जम जोरा को नांहि ।* 
*काल मीच लागै नहीं, मिल रहिये ता मांहि ॥२६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिस ब्रह्म - स्वरूप में किसी भी काल - कर्म की गति नहीं है, उस ब्रह्म में विचार द्वारा लय लगाकर अभेद होइये ॥२६॥ 
*एक देश हम देखिया, जहँ ऋतु नहीं पलटै कोइ ।* 
*हम दादू उस देश के, जहँ सदा एक रस होइ ॥२७॥* 
टीका ~ सतगुरु महाराज कहते हैं कि हे जिज्ञासुओं ! हम ब्रह्मवेत्ता संतों ने एक देश, कहिए बह्मदेश अनुभव द्वारा देखा है, वहाँ प्रकृति की ऋतुएँ नहीं वर्तती हैं । वहाँ एक रस है । समय, अवस्था, दिशा इन सबसे रहित होकर सभी संत उस अद्वैत अखंड ब्रह्म में लय लगाते हैं ॥२७॥
(क्रमशः)

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