बुधवार, 12 जून 2013

= मध्य का अंग १६ =(१९/२१)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= मध्य का अंग १६ =*
*निराधार निज भक्ति कर, निराधार निज सार ।*
*निराधार निज नाम ले, निराधार निराकार ॥१९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! गुणातीत होकर आत्म - स्वरूप का विचार करिये, क्योंकि निराधार मन ही आत्मा आनन्द में स्थिर रहता है । इस प्रकार निष्काम भाव से ज्ञानामृत पीने वाले संत कोई विरले ही हैं ॥१९॥ 
*निराधार निज राम रस, को साधु पीवनहार ।*
*निराधार निर्मल रहै, दादू ज्ञान विचार ॥२०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! निराधार, कहिए निर्गुण ब्रह्म की ही उपासना करिये, क्योंकि निर्गुण ब्रह्म के निष्काम भक्त ही आत्मा का निश्‍चय करके निर्विकार रहते हैं ॥२०॥ 
*जब निराधार मन रह गया, आत्म के आनन्द ।*
*दादू पीवे रामरस, भेटे परमानन्द ॥२१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब मन गुणातीत होकर निराधार ब्रह्म में अभेद हो जाता है, तब स्व - स्वरूप आनन्द की प्राप्ति होती है । इस संसार से मुक्त - पुरुष परमानन्द की प्राप्ति करके अतृप्त भाव से राम - रस पीते हैं और ब्रह्मस्वरूप में मग्न रहते हैं ॥२१॥
(क्रमशः)

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