🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
*गुरुदेव का अंग १/१५६*
.
दादू सब ही गुरु किये, पशु पंखी वनराइ ।
तीन लोक गुण पंच से, सबही मांहिं खुदाई ॥१५६॥
उक्त साखी के पूर्वार्ध का अर्थ बदल कर छेड़छाड़ करने वालों को समझाना रूप कथा -
गरीबदास असवार लख, करी खेचरी नाथ ।
अर्थ फेरि उत्तर दियो, रहे राम रंग साथ ॥४१॥
एक समय एक नाथों की मंडली मौजमाबाद में आई थी । मंडलेश्वर ने एक दिन गरीबदासजी को भी निमंत्रण देकर बुलाया था । गरीबदास अश्व पर बैठकर गये थे । वहाँ एक नाथ ने उक्त १५६ की साखी गरीबदासजी को सुनाकर कहा - आपके गुरु दादूजी ने तो पशु, पक्षी, वनराइ अर्थात् वृक्ष आदि सब को ही गुरु माना है और आप अश्व पशु पर बैठते हैं तो आपका अपने दादू गुरु पर ही बैठना हुआ । गरीबदासजी ने कहा - आपने साखी का अर्थ गलत समझा है । दादू सबही गुरु किये का अर्थ है सबको ही गुरु(महान् ईश्वर) ने ही रचा है । अतः अर्थ ज्ञान ने होने से ही आप काल्पनिक अर्थ लगाते हैं ।
उक्त अर्थ सुनकर वह नाथ मौन ही रहा कु़छ नहीं बोला । गरीबदासजी मौजमाबाद से नारायणा दादूधाम को आने लगे तब एक नाथ ने उनके घोड़े की गति रोक दी, वह वहां ही खड़ा हो गया । आगे चलाने पर भी नहीं चलता था । तब गरीबदासजी जान गये कि इस सामने खड़े हुये नाथ ने इसकी गति रोक दी है । फिर गरीबदासजी ने सत्यराम मंत्र बोल कर घोड़े के कंधे पर एक थप्पी मारकर कहा - चल । इतना कहते ही घोड़ा शीघ्र गति से चल दिया । तब नाथों ने समझ लिया कि गरीबदास करामती हैं ।
गरीबदासजी नारायणा दादूधाम में आ गये । उसी रात में नाथों की मंडली के सभी नाथों के सेली, सींगी, कर्णमुद्रा, नाद आदि सभी वस्तुयें अपने आप ही लुप्त हो गई । तब सब नाथों ने सोचा - कल गरीबदासजी से कुछे नाथों ने छेड़छाड़ की थी । अतः उन्होंने ही यह करामात दिखाई है । फिर वे गरीबदासजी के पास आये और उन से क्षमा याचना की । तब गरीबदासजी ने कहा - मेरी गुफा में हैं, ले जाओ । गुफा में गये तो सर्प बिच्छू आदि मिले ।
फिर गरीबदासजी के पास आकर अति नम्रता से प्रार्थना करके कहा - आपकी माया को आप ही समेटो । तब गरीबदासजी ने कहा - सेली तो हम रखेंगे और कर्णमुद्रा आदि जैसे लुप्त हुई थीं वैसे ही प्रकट हो जायेगीं । किन्तु भविष्य में ऐसा व्यवहार किसी के साथ नहीं करना । फिर प्रणाम करके नाथ लौट आये । रात्रि में सोते समय कर्णमुद्रा आदि सब आ गये थे । उक्त प्रकार नाथों को गरीबदासजी ने साखी का अथ४ बताकर तथा उनकी सिद्धि के गर्व को नष्ट करके समझाया था ।
इति गुरु देव का अंग १ समाप्तः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें