सोमवार, 1 जुलाई 2013

= सारग्राही का अंग १७ =(२२/२३)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*सारग्राही का अंग १७*
*जब जीवन - मूरी पाइये, तब मरबा कौन बिसाहि ।*
*दादू अमृत छाड़ कर, कौन हलाहल खाहि ॥२२॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जब सत्संग द्वारा सजीवनी जड़ी रूप अनन्य - भक्ति प्राप्त हो जावे, तो फिर मृत्यु देने वाले जहर रूप विषय - वासनाओं से वह क्यों प्यार करेगा ? जैसे किसी को अमृत प्राप्त हो जावे तो, फिर वह हलाहल ‘पाइजन’ को क्यों पीवेगा ? अर्थात् नहीं पीवेगा ॥२२॥ 
*जब मानसरोवर पाइये, तब छीलर को छिटकाइ ।* 
*दादू हंसा हरि मिले, तब कागा गये बिलाइ ॥२३॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जब हंस मानसरोवर को प्राप्त कर लेता है, तब फिर छोटे ताल - तलैयों का त्याग कर देता है । इसी प्रकार जब मुक्त - पुरुष ब्रह्मानन्द को प्राप्त कर लेते हैं, तब फिर विषय - आनन्द रूप सुख को त्याग देते हैं । अर्थात् उनकी विषय - सुख भोगने वाली कागा रूप वृत्ति नष्ट हो जाती है ॥२३॥ 
(क्रमशः)

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