॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*जीवित मृतक का अंग २३*
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*दादू तो तूं पावै पीव को, मैं मेरा सब खोइ ।*
*मैं मेरा सहजैं गया, तब निर्मल दर्शन होइ ॥१५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! तब तो तुम, पीव को कहिए मुखप्रीति का विषय जो परमात्मा है, उसको प्राप्त करोगे, जब मैं और मेरापन, इस मिथ्या अहंकार को अन्तःकरण से मिटा दोगे अर्थात् जिसके अन्तःकरण से ‘मैं और मेरा’, यह अध्यास दूर हो गया, तभी अन्तःकरण में शुद्ध स्वरूप का कहिये आत्मा का साक्षात्कार होगा ॥१५॥
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*मैं ही मेरे पोट सिर, मरिये ताके भार ।*
*दादू गुरु प्रसाद सौं, सिर तैं धरी उतार ॥१६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसारीजनों के अन्तःकरण पर अहम्ता, ममता रूप अज्ञान व्याप्त है और अहम्ता रूपी भ्रम से ही स्वस्वरूप आनन्द से विमुख रहते हैं । परन्तु गुरु उपदेश से जिन उत्तम पुरुषों ने, इस आपे को छोड़ा है, उन्हीं को परमात्मा का साक्षात्कार होता है ॥१६॥
मैं मेरी करते मनां, भोगे मायाजाल ।
ताथैं हरि तत्काल ही, परे काल के गाल ॥
(क्रमशः)
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