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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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प्रथम दिन - प्रारंभ
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अथ मंगल
दो. - ब्रह्म परात्पर दादू अरु, सुमिर सु गुरु धन राम ।
मन वाह्यांतर वृत्ति की, वार्ता लिखूं ललाम ॥१॥
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वाह्यांतर वृत्तियों का सामान्य परिचय -
काया नगरी मध्य में, स्रदय नाम का धाम ।
वसती हैं उस भवन में, दो नारी अभिराम ॥२॥
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अपने-अपने कार्य में, दोनों परम प्रवीन ।
इक संतत बाहिर फिरे, इक आंतर हरि लीन ॥३॥
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वाह्य वृत्ति इक नाम है, दूजी आंतर वृत्ति ।
प्यारी प्रवृत्ति वाह्य को, आंतर को सु निवृत्ति ॥४॥
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भाग्योदय से एक दिन, होकर वाह्य उदास ।
आई अरु कुछ क्षणों तक, बैठी आंतर पास ॥५॥
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लख उदास मुख वाह्य का, आंतर वृत्ति सप्रेम ।
बोली सखी उदास क्यों, है तो सब विधि क्षेम ॥६॥
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आंतर की वाणी मधुर, सुन कर के सकुचाय ।
बोली मुझको क्षेम कहँ, दुखहि दृष्टि में आय ॥७॥
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जगूं उसी क्षण से सखी, सोऊं तब तक चैन ।
पड़ता नहिं है मुझे तो, सत्य मान मम बैन ॥८॥
(क्रमशः)
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