॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*जीवित मृतक का अंग २३*
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*मृतक होवै सो चलै, निरंजन की बाट ।*
*दादू पावै पीव को, लंघै औघट घाट ॥२१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो पुरुष देह अध्यास से रहित, निष्काम गुणातीत होकर, निरंजन की भक्ति मार्ग पर चलेगा, वही पुरुष संसारभाव से मुक्त होगा और ब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार करके मग्न रहेगा ॥२१॥
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*जीवित मृत्तक*
*दादू मृतक तब ही जानिये, जब गुण इंद्रिय नांहि ।*
*जब मन आपा मिट गया, तब ब्रह्म समाना मांहि ॥२२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब तुमको अन्तःकरण के सुख दुःख आदि धर्म जो रजोगुण तमोगुण की चंचलता और जड़ता अर्थात् कठोरता, क्रूरता तथा इन्द्रियों के विषय नहीं व्यापें, तब मृतक तुल्य निर्वासनिक हो गया, यह निश्चय करना ॥२२॥
यस्य देहादिकं नास्ति यस्य ब्रह्मेति निश्चयः ।
परमानन्दपूर्णो यः सजीवन्मुक्त उच्यते ॥
लेन परीक्षा कारणैं, तपसी के ढिग जाइ ।
राख खुसेरी आगि लग, गारी दई यह पाइ ॥
दृष्टान्त ~ एक तपस्वी जी तप कर रहे थे । धूणा लगा रखा था । एक कोई विवेकी भक्त ने आकर नमस्कार किया और बोला ~ महाराज ! आपके शरीर का क्या नाम है ? तपस्वी बोला ~ शीतलदास । भक्त ने सोचा कि देखें, महाराज शीतल हैं या अग्नि के सम्पर्क से गर्म हैं । तब चिमटा उठाकर आग खुसेरने लगा । तपस्वी बोला ~ क्या करता है ? भक्त ~ महाराज ! मैं भूल गया । फिर दुबारा चिमटा लेकर, फिर खुसेरने लगा । फिर तो तपस्वी जोर से बोले ~ यह क्या करता है ? कुछ देर में फिर चिमटा लेकर फिर खुसेरने लगा । तब तो तपस्वी जी को बड़ा कोप हो गया और डांटा । चिमटा रख कर भक्त बोला ~ महाराज ! आपका क्या नाम है ? तपस्वी बोला - तेरी ऐसी की तैसी ? यह नाम है हमारा । भक्त जान गया मन में, अभी तो महाराज ! जैसा नाम है, ऐसे शीतल तो नहीं बने ।
(क्रमशः)
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