*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्थ - तरंग” १८-१९)*
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*सांभर में श्री दादू जी की अपार महिमा*
*इन्दव छन्द*
छाय रही उपमा पुर सांभर,
निन्दक लोग हु देखि जरे हैं ।
हिन्दुन लोग कियो झगरो मिल,
उत्तर दे मद मान हरे हैं ।
काजिन विप्र सबै पचि हारत,
देखि प्रभाव हिं पाँव परे हैं ।
जा जन को हरि काज सुधारत,
ता जन कौन अकाज करे हैं ॥१८॥
साँभर शहर में ज्यों - ज्यों दादूजी की महिमा बढ़ने लगी, त्यों त्यों निन्दक लोग ईर्ष्या द्वेष से जलने लगे । कुछ वर्णाश्रम धर्म - पक्षपाती हिन्दुओं ने भी मिलकर विरोध प्रकट किया । श्री दादूजी ने उनको शास्त्र सम्मत यथोचित उत्तर देकर शान्त किया । उनका मद अहंकार दूर किया । मुसलमान धर्मगुरु काजी, और विरोधी विप्र समाज अपने प्रयत्न कर करके हार गये, तप: प्रभाव से अन्तत: श्री दादूजी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी । जिनका सब कार्य श्री हरि सम्पादित करते है, उनके कार्य में विध्न विरोध बाधा भला कब तक रहती । श्री दादूजी के तप: प्रभाव के आगे सब नतमस्तक हो गये ॥१८॥
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*सिकदार कोप लोगों ने बहकाया*
पंचायत करि ब्राह्मण वैश्यहि,
वे शठ काजिन के संग लीन्हे ।
जाय कही सिकदार गृहे सब,
मूरख रोष भर्यो मतिहीने ।
छींत लिखी रुपये शत पंच हि,
डुंडि फिराय पुरी मंधि दीन्हे ।
दादुहि दर्शन जो जन जावहिं,
दण्ड भरहु थाणैं बस कीन्हे ॥१९॥
कुछ विद्वेषी ब्राह्मण वैश्यों ने अज्ञानता के कारण काजी से मिलकर षड्यन्त्र रचा । पंचायत करके काजी के घर गये । उसे श्री दादूजी के विरुद्ध उत्पेरित किया । वह मतिहीन मूर्ख काजी उनके बहकाने पर और अधिक द्वेष रोष से कलुषित हो गया । उसने छींत(एक आदेश) लिखवाया कि - जो कोई दादू के दर्शन करने जावेगा, वह दण्ड स्वरूप ५००/ - रुपये भरेगा । नहीं तो उसे थाणे में बन्द कर दिया जावेगा । इस आदेश की डुंडी(घोषणा) सारे शहर में करवा दी गई ॥१९॥
(क्रमशः)
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