मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

= जीवित मृतक का अंग २३ =(२३/२४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*जीवित मृतक का अंग २३*
*दादू जीवित ही मर जाइये, मर मॉंही मिल जाइ ।*
*सांई का संग छाड़ कर, कौन सहै दुख आइ ॥२३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! निर्वासनिक होकर अर्थात् अनात्म अहंकार रूप वृत्ति को त्यागकर, अन्तःकरण की अन्तर्मुख वृत्ति को, उसी चैतन्यस्वरूप लक्ष्य में विलय कर दे । फिर उस अधिष्ठान चैतन्य में अभेद होने के बाद, फिर द्वैतभाव में आकर वे क्यों ससार का दुःख सहेंगे ॥२३॥
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*उभय निर्दोष*
*दादू आपा कहा दिखाइये, जे कुछ आपा होइ ।*
*यहु तो जाता देखिये, रहता चीन्हों सोइ ॥२४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस मिथ्या तन, मन आदि के आपा को क्या दिखाते हो ? यह तो क्षण - भंगुर है । इसका अहंकार करना वृथा है । और इससे अनन्य अविनाशी परब्रह्म को, अपने अन्तःकरण में गुरु उपदेश के द्वारा पहचानो, कहिये जानो अर्थात् उसको आत्मस्वरूप करके ही साक्षात्कार करो ॥२४॥
(क्रमशः)

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