बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(३/४)



॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*राम कहैं ते मर कहैं, जीवित कह्या न जाइ ।* 
*दादू ऐसैं राम कहि, सती शूर सम भाइ ॥३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वही राम का स्मरण करते हैं, जो जीते जी, आपा अभिमान से रहित हो गये हैं । जो आपा अभिमान में जीवित हैं, उनसे राम का स्मरण नहीं किया जाता । इस प्रकार राम का स्मरण करे कि जैसे सती मृतक पति के साथ अपने शरीर को हवन कर देती है और जिस प्रकार शूरवीर अपने मालिक के लिये, या देश के लिये, अपना सिर देने को भी उद्यत रहता है । ऐसे ही राम का सेवक, सर्वस्व राम के समर्पण करके राम का स्मरण करता है ॥३॥ 
*जब दादू मरबा गहै, तब लोगों की क्या लाज ?* 
*सती राम साचा कहै, सब तज पति सौं काज ॥४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब सती मृतक पति के साथ अपने शरीर को हवन कर देती है । इसी प्रकार सच्चे शूरवीर भक्त भी, लोक लाज को त्याग कर, परमात्मा रूपी पति से ही प्रीति करके मनुष्य जन्म के उद्देश्य की पूर्ति करते हैं ॥४॥ 
धन - धान्य - प्रयोगेषु विद्या - संग्राह्येषु च । 
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ॥
(क्रमशः)

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