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साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*पहली श्रवण द्वितीय रसना, तृतीय हिरदै गाइ ।*
*चतुर्थी चिन्तन भया, तब रोम रोम ल्यौ लाइ ॥*
उक्त साखी के उत्तरार्ध पर दृष्टांत -
चिन्तन चौथी अवस्था, रोम रोम से होय ।
चोखा शव विट्ठल ध्वनी, श्रवण करत सब कोय ॥
(नारायण)
चोखा मेला महार जाति के थे और मंगल बेडा में रहते थे । ये विट्ठल भगवान् के परम भक्त थे । इनके भक्ति का रंग नामदेवजी से लगा था । ये पण्ढरपुर में बारंबार विट्ठल भगवान् के दर्शन करने आते रहते थे । मंगलबेड़ा में नगर के दंडा की मरम्मत हो रही थी । चोखा भी उसमें काम कर रहा था । सहसा दंडा ढह गया, उसके नीचे १६ व्यक्ति दब गये । उनमें चोखा भी दबकर मर गया ।
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सन् १३३८ ई. में उक्त प्रकार चोखा का देहान्त हो गया । नामदेव ने भक्त परिषद बुलाकर यह प्रस्ताव रखा कि चोखा की भक्ति से आप सभी परिचित हैं । अतः सब भक्त हरिनाम व गुण कीर्तन करते हये मंगलबेड़ा चलें और चोखा का शव लाकर यहां समाधि बनावें । फिर कीर्तन करते हुये हजारों भक्त नामदेव के साथ मंगलबेड़ा गये ।
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वहां चोखा आदि के शव दीवाल के नीचे दबे थे । नामदेव ने कहा - हम सब लोग पत्थरों को हटा कर शव को निकालें । सब ने मिल कर पत्थर हटाये तो १६ शव निकले । सब के मुख विकृत हो गये थे । इस से चोखा को पहचान न सके । नामदेव ने कहा - शवों के कान लगा लगा कर सुनें जिस शव के रोम रोम में विट्ठल ध्वनि सुनाई दे वही चोखा का शव है ।
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एक शव के रोम - रोम से विट्ठल ध्वनि निकल रही थी । उसी से निश्चय किया कि यही चोखा का शव है । फिर उस शव को कीर्तन करते हुये पण्ढरपुर लाकर पण्ढरीनाथ के महाद्वार पर समाधि बनाई । अतः स्मरण की चौथी अवस्था में रोम रोम से नाम ध्वनि हो लगती है ।
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