गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

= प. त./३-४ =





*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” ३/४)* 
*सुन्दर सिंह और प्रहलाद जी सांभर आये* 
आपन - लोग तजे चल भूपति, 
ब्राह्मण संग लिये प्रहलादू । 
भेष कियो भगवाँ तन धारिहु, 
होत उदास चले उस्तादू । 
वर्ष भये द्वय आय गुरु संग, 
देखत नैन गये दुख बाधू । 
पाद परे नृप, संत जु भाखत, 
अम्बर श्वेत रमै सनकादू ॥३॥ 
सुन्दर सिंह जी ने अन्य साथियों को छोड़ दिया, और केवल पुरोहित प्रहलाद को साथ लेकर साँभर के लिये प्रस्थान का विचार किया । शरीर पर भगवाँ रंग के वस्त्र धारण कर लिये । मन को गुरु प्राप्ति की तीव्र लालसा व्यथित कर रही थी । उपदेश - दीक्षा के अभाव में उदास थे । प्रस्थान करते समय सिद्धसंत चतुर्नाग जी ने कहा - अभी गुरु मिलने का समय नहीं आया है । दो वर्ष तक कहीं एकांत में राम - राम करो । उनके वचनानुसार सुन्दर सिंह प्रहलाद विप्र के साथ विराटनगर की पर्वतगुफा में राम - राम जपते रहे । दो वर्ष बीतने पर साँभर में आकर अपने गुरु श्री दादूजी के दर्शन किये । दर्शन मात्र से ही उनका संताप दूर हो गया । गुरु के चरणों में नमस्कार करने पर - गुरुदेव श्री दादूजी ने कहा - सनक आदि सब ॠषि श्वेत वस्त्रों में रमते रहते है । यह सुनकर सुन्दर सिंह जी ने भी श्वेत वस्त्र धारण कर लिये ॥३॥ 
*सुन्दर दास जी का शिष्य होना* 
सम्वत् चन्द ॠतू षट् विंश हि, 
फागुन सुद् वसु शिष्य सुवासा । 
सुन्दर नाम धर्यो जिनको गुरु, 
मन्त्र सुनाय कियो सिध तासा । 
ज्यों प्रहलादहिं व्है सुन्दर गुरु, 
आयसु पाय कियो निज दासा । 
वर्ष विचार रहे भय - हरण हिं, 
आयसु पाय रु घाटडे वासा ॥४॥ 
संवत् १६२६ की फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन श्वेत वस्त्र धारण किये सुन्दर दास जी को श्री दादूजी ने शिष्य बनाकर उपदेश दीक्षा दी । मंत्र बताकर साधना द्वारा उसे सिद्ध करने का आदेश दिया । गुरु आज्ञा से विप्र प्रहलाद को सुन्दर दास जी ने शिष्य बना लिया । गुरुदेव ने सुन्दर दास जी का नाम अब ‘सुन्दरदास’ ही रख दिया । वे दोनों एक वर्ष तक समीपस्थ भयहरण गिरि पर भजन करते रहे । गुरु दर्शन को आते रहते । फिर आज्ञा लेकर घाटडे़ ग्राम में पधार गये । वहाँ अपना आसन लगाया ॥४॥ 
(सुन्दर दास जी का असली नाम सुन्दर सिंह था) 
(क्रमशः)

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