*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” १/२)*
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*इन्दव छन्द*
*शिष्य बड़े सुन्दरदास राजा - प्रसंग*
बीकानेर लधू नृप‘सुन्दर’, काबुल में पतशाह पठाये ।
फौज सबै दल झूझि मरे जन, भूपति खेत रहे उत आये ।
चन्दरसेन उठाय लिये नृप, सार करी उन टेल कराये ।
बीकानेर पाती लिख भेज हि, होत खुशी मथुरा पुरि आये ॥१॥
बीकानेर रियासत के राजा कल्याणमल जी के छोटे भाई सुन्दर शरीर वाले ‘सुन्दर’ को तथा चिन्दाणीपुरा के राजा चन्द्रसेन को अकबर बादशाह ने विशाल सेना के साथ काबुल के मिर्जा हाकिम को जीतने के लिये भेजा था । काबुल में झूझते हुये बहुत से सैनिक मारे गये । स्वयं सुन्दर भी घायल होकर मूर्छित हो गये । उनके सैनिक उन्हें वीरगति पाया हुआ समझकर चले गये और बीकानेर राजघराने को पत्र द्वारा सूचना भेज दी । राजा चन्द्रसेन उन्हें शिविर में उठा लाया । वहाँ उन्हें चेतना आ गई, तब उसने सेवा सुश्रुषा करके उनको स्वस्थ किया । स्वस्थ होने पर सुन्दर मथुरा पहुंचे ।
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*सुन्दर सिंह का श्रादकर के मथुरा में मिले*
आपुन लोग मिलै मथुरा मधि, व्है समचार सती भइ नारी ।
लूण हि के सुत यों सुन सन्दर, ज्ञान भयो उर माँहि विचारी ।
चत्तुर्नाग हिं पाँव पर्यो नृप, संत कहें - सुन बात हमारी ।
दादु दयालु भजे करडालहिं, साँभर में उपदेश संवारी ॥२॥
मथुरा में उन्हें अपने कुछ परिजनों के साथ राज पुरोहित प्रहलाद मिले । वे राजा सुन्दर सिंह का गया श्राद्ध करके लौट रहे थे । उनसे समाचार ज्ञात हुये कि - राणी राजकुंवारी तो सती हो गई है(जो कि महाराजा उदयसिंह की छोटी बहिन थी) । लूण सिंह के सुत राजा सुन्दर सिंह के मन में यह वृतान्त सुनकर वैराग्य उत्पन्न हो गया । सोच विचार करके ज्ञानदीक्षा हेतु वे समीपस्थ वृन्दावन धाम निवासी सिद्ध संत निम्बाकाचार्य श्री चतुर्नाग जी के पास गये । चरणों में नमस्कार करके उपदेश दीक्षा की प्रार्थना की । सिद्ध संत ने ध्यान से देखकर कहा - अरे भाई, तुम्हारी आत्मा का संस्कार मेरे से सम्बन्धित नहीं है । तुम तो परम संत श्री दादूदयाल जी की आत्मा हो, उन्हीं की शरण में जाओ । कल्याणपुरी में तपस्या पूर्ण करके वे अब साँभर शहर में उपदेश दे रहे है ॥२॥
(क्रमशः)
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