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*"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
*गुरुदेव का अंग १/३८*
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*दादू दीये का गुण तेल है, दीया मोटी बात ।*
*दीया जग में चाँदणा, दीया चाले साथ ॥३८॥*
*दृष्टांत* -
रोटी कोपी दोवटी, तंदुल पैसा रोक ।
जन रज्जब ते ऊबरे, जिन बाह्या हरि की ओक ।
द्रौपदी सुदामा क्या दिया, तिमरलिंग क्या दादू ।
भले भाव पात्र हु पड्या, खानि उघाड़ी आदू ॥५६॥
(अं ९५ । रज्जबजी)
उक्त साखी पर दान के प्रसंग पर उक्त दोहे के दृष्टांत हैं । दीये का - दान देने का गुण(फल) वे ही प्राप्त करते हैं जो देते हैं । जैसे रोटी तिमर लिंग नामक बालक ने दी थी । उसका लाभ उसने सात जनम तक राज्य प्राप्त किया था ।
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*तिमरलिंग ने रोटी दीन्हीं* तातैं सात बादशाही लीन्ही ।
गरीबदास छुडाणी ।
तिमरलिंग एक लड़का वन में मार्ग के पास ही गो चरा रहा था । दिन के ११ - १२ बजे के लगभग एक संत को मार्ग से जाता देखकर तिमरलिंग ने सत के पास आकर उन्हें प्रणाम किया और बोला - आपने भिक्षा की है या नहीं ? संत ने कहा की तो नहीं है, आगे कोई ग्राम आयेगा उसमें कर लेंगे । तिमरलिंग - ग्राम बहुत दूर है, ग्राम पहुंचेंगे तब तक तो रोटी मिलना कठिन पड़ेगा । मेरी माता रोटी लेकर आने वाली है । आप इस खेजड़े के वृक्ष को छाया में बिराजें । भोजन करके विश्राम करना फिर पधार जाना । संत - तेरी माता रोटी तेरे लिये लायेगी, हमारे लिये तो नहीं लायेगी ? तिमरलिंग - आप तो प्रथम जीम लेना मेरे लिये तो वह अपनी रोटी भी साथ ले आती है, यदि आज भी ले आयेगी तो आप और मै दोनों ही जीम लेगें ।
तिमरलिंग की सरल बातों से संत प्रसन्न हुये और ठहर गये । उसकी माता रोटी लेकर आई तब प्रथम संत को जीमाया । संत ने जीमकर तिमरलिंग के दंडा मारा । उसकी माता ने कहा - क्षमा करें किन्तु संत तो मारते ही गये । सात दंडे मारने पर माता तिमरलिंग पर पड़ गई तब संत चले गये । उक्त रोटी देने से तिमरलिंग सात जन्म तक राजा बनता रहा था । रोटी दी उसका लाभ तिमरलिंग ने प्राप्त किया था ।
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*कोपी* - कोपीन द्रौपदी ने दुर्वासा को दी थी । उसी से उसका राजसभा में भगवान् ने चोर बढ़ाया था । कोई पर्व का दिन था । द्रौपदी अपनी दासियों के साथ यमुना स्नान करने गई थी । वहां दुर्वासा भी यमुना में कटि पर्यन्त जल में खड़े थे । द्रौपदी स्नान करने के पश्चात दुर्वासा से बोली - भगवन् ! जल के बाहर पधारें तो हम लोग भी विधि - विधान से आपको प्रणाम करें । दुर्वासा - मेरी कौपी जल में बह गई है । अतः बिना कौपीन के बाहर कैसे आऊं ? तब द्रौपदी ने अपना उत्तरीय वस्त्र फाड़ - फाड़ कर कई बार फैका । एक खण्ड दुर्वासा के हाथ में आ गया । फिर कौपीन बाँधकर बाहर आये । बाइयां सप्रेम प्रणामादिकर के चली गई । उसी से द्रौपदी की चीर बढ़ा था ।
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*दोवटी* - खादी कबीर ने दी थी । उसका लाभ बालद आना भी उन्हीं को प्राप्त हुआ था । सब दोवटी दान करने पर घर न जाकर जंगल में जाकर भजन करने लगे । घर के लोग प्रतीक्षा कर रहे थे किं कबीर आवे और कु़छ आटा आदि लावें तो भोजन बने । तब भगवान् ने कबीर का रूप बनाकर बालद द्वारा बहुत सामान लाकर घर पर ड़ाल दिया था और कबीर को भी जाकर कहा - यहां क्यों बैठा है ? कबीर के जा । कबीर सबको इच्छानुसार दे रहा है । कबीर गये तो भगवान् रूप कबीर अन्तर्धान हो गये । फिर कबीर ने सब समान बांट दिया । कु़छ भी नहीं रखा था ।
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*तंदुल* - सुदामा ने भगवान् को दिया था । उससे उसका घर स्वर्ग का बन गया था । यह कथा अति प्रसिद्ध है ।
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*पैसा दादूजी ने दिया था* - ११ वर्ष की आयु में बालकों के साथ सायंकाल से कु़छ पहले अहमदाबाद के कांकरिया सरोवर पर खेल रहे थे । तब भगवान् वृद्ध के रूप में प्रकट हुये अन्य बालकों को तो भयंकर लगे । अतः भाग गये और दादूजी को प्रिय लगे । दादूजी पास गये और प्रणाम करके जेब में हाथ डाला एक पैसा मिला वही भगवान के भेंट किया । उसका लाभ परम ज्ञान धन प्राप्त हुआ ।
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