बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

दादू नीका नाम है २/४

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साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*दादू नीका नाम है, तीन लोक तत सार ।*
*रात दिवस रटबो करी, रे मन इहे विचार ॥४॥*
उक्त साखी के तृतीय पाद रात दिवस रटवो करी पर दृष्टांत - 
गुरु दादू पै आइयो, शिष्य होन कि वृद्ध ।
यह साखी सुन लग रह्यो, मगन भयो अरु सिद्ध ॥१॥
आमेर से उत्तर की ओर एक ग्राम में जगदीश नामक एक श्रीमान् सज्जन रहते थे । वे वृद्ध हुये तब एक दिन उनकी प्रिय संपत्ति सहस दुःख रूप भासने लगी । इस को रोग समझकर चिकित्सों को दिखाया किन्तु कोई रोग नहीं बताया । फिर एक सत्संगी सज्जन ने कहा - तुम्हार दुःख उच्चकोटि के संत के वचनों से दूर होगा । 
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फिर जगदीश ने संत की खोज की तो ज्ञात हुआ आमेर में संत दादूजी उच्चकोटि के संत हैं । वह आमेर दादू आश्रम पर आया और पू़छा - दादूजी कहां हैं । शिष्य संतों ने कहा - गुफा में हैं । गुफा से बाहर आयेंगे तब हम भी दर्शन करने जायेंगे । तुम भी साथ चलना, फिर गये तब अन्य सब तो दर्शन करके बैठ गये किन्तु जगदीस खड़े ही रहे । दादूजी ने कहा - बाबा बैठ जाओ । 
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जगदीश ने अपना उक्त दुःख सुनाकर कहा - मैं आपकी शरण आया हूं । मेरा दुःख मिटाने की कृपा करें । दादूजी ने कहा तुम्हार दुःख मिट जायगा, तुम यहाँ रहो और संतों के पास बैठ कर सत्संग करो । संत कहै सो याद कर लिया करो और उस वचन में जो करने को कहा हो उसे किया करो । 
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जगदीश उसी दिन एक संत के पास बैठे । उस संत ने उक्त ४ नं. की साखी सुनाई । उसें याद करके रात दिवस रटबो करी के अनुसार रात दिन नाम स्मरण करने लगे । एक सप्ताह के बाद दादूजी ने शिष्य संतों से पू़छा वह वृद्ध आया था, गया क्या ? संतों ने कहा - यहां ही है । दादूजी - सत्संग, आरती में आता है ? संत - नहीं । वह तो शरीर क्रिया करने जाता है और पंक्ति में आता है । शेष सब समय आसन पर बैठा रहता है । किसी से बात भी नहीं करता । मन से क्या करता है, यह तो वही जाने ।
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दादूजी ने उसे बुलवाया और पू़छा - तुम सत्संग, आरती में क्यों नहीं आते ? उस ने कहा - मैंने एक दिन सत्संग किया था और आप की आज्ञा के अनुसार उसे करने में लगा हूँ । दादूजी - वह क्या है ? सुनाओ । उसने उक्त साखी सुनाकर कहा - रात दिन तो नाम रटूँ फिर शेष समय कहाँ रहाता है, जिस में सत्संग करुं । दादूजी ने कहा - ठीक है तुम रात दिन नाम ही रटते रहो । नाम रटने के लिये ही सत्संग आदि किये जाते हैं । जगदीश की शेष कथा दादू पंथ परिचय के पर्व ४ अध्याय २३ में देखें ।

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