#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दुर्लभ दर्शन साध का, दुर्लभ गुरु उपदेश ।*
*दुर्लभ करबा कठिन है, दुर्लभ परस अलेख ॥*
*अमर भये गुरु ज्ञान सौं, केते इहि कलि माहिं ।*
*दादू गुरु के ज्ञान बिन, केते मरि मरि जाहिं ॥*
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साभार : Mahavidya Shri Bagalamukhi Sadhana Aur Siddhi ~
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*बीज की अमर कथा ....*
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एक दिन एक बीज ने अपने पिता से कहा कि में भी आपकी तरह बहुत बड़ा व्रक्ष बनना चाहता हूँ, में आपके जैसा वृक्ष कब बनूँगा? वृक्ष कुछ समय तो मौन रहा फिर गंभीर आवाज में बोला - इसके लिए तुम्हें मिटना होगा ....अपने अस्तित्व का समाप्त करना होगा। तो बीज ने पूछा - क्या इसमें पीड़ा होती है ? वृक्ष ने ईमानदारी से जवाब दिया - बिना पीड़ा के तो इस संसार में कोई नव निर्माण संभव ही नहीं है। बीज कुछ उदास हो गया ... तो वृक्ष पुनः बोला - यदि पीड़ा से तुम्हारी माँ भी घबराती तो तुम दुनिया में कैसे आते ... संसार में हर सुख के साथ दुःख भी होते हैं से कभी नहीं घबराना चाहिए।
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और इस प्रकार बीज ने एक दिन निर्णय कर ही लिया कि मिट तो में वैसे भी जाऊंगा ही तो क्यों ना मिट्टी में मिलकर अपने अस्तित्व को मिटा दूँ .. और बीज एक दिन मिट्टी में मिल जाता है ... जमीन की गहराइयों में अपने आप को दफ़न कर देता है। मिट्टी में परम शांति है ... संसार के सब शोरगुल समाप्त हो जाते हैं .... एक गहरा सन्नाटा है और सबसे बड़ी बात वहां बीज के करने के लिए कुछ भी नहीं है …. जो कुछ भी करती है वो कुदरत करती है, प्रकृति करती है।
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यहाँ बीज के साथ दो प्रकार की घटना घटती है एक तो बीज सम्पूर्ण समर्पण कर देता है और प्रकृति उसमें विस्फोट करके उसे जमीन से बाहर निकाल कर धीरे-धीरे वृक्ष ये है ... कि बीज उस सन्नाटे में अपने आप को अकेला पाकर घबरा जाता है और वो जमीन से बाहर निकलने के लिए अपनी शक्ति का संचय करता है और अपनी शक्ति को इतना बढा लेता है कि उसमें विस्फोट हो जाता है और बीज टूट जाता है और एक सुन्दर पोधा बनकर जमीन से बाहर आ जाता है।
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और प्रकृति धीरे-धीरे उसे वृक्ष बना देती है ... जो हजारों लोगों को अपनी छाया देता है .... फल फूहै और जाते-जाते अपनी लकडियां भी समाज कल्याण के लिए दे देता है .... यही तो बीज की अमर कथा है और सच कहूँ तो यही शिष्य की अमर कथा है और साधक की अमर कथा है। तुम जीवन में आगे तभी बढोगे जब अपनी जगह को छोड़ने के तैयार हो जाओगे .... गति करोगे तो स्थान भी बदलेगा और वातावरण भी बदलेगा ... और अंततः तुम जो हो वो तुम नहीं रहोगे .... क्योंकि ये तो बीज की यात्रा है ....
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