मंगलवार, 12 नवंबर 2013

= ६७ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू कर्त्ता करै तो निमष में, ठाली भरै भंडार । 
भरिया गह ठाली करै, ऐसा सिरजनहार ॥५॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! कर्त्ता परमेश्‍वर एक निमिष में जिनके भंडारे भरे थे, उनको तो खाली कर देता है और जिनके घर भंडार खाली थे, उनको भर देता है । ऐसा वह समर्थ है ॥५॥ 
पार्वती शिव सों कह्यो, या निर्धन धन देहु । 
सेठ सुनत्त साटो कर्यो, तव गृह दे मम लेहु ॥ 
दृष्टान्त ~ एक समय भगवान् शंकर और पार्वती रमते - रमते एक नगर में जा रहे थे । एक गरीब भक्त बनिये के लड़के ने आकर नमस्कार किया । दुकान पर ले जाकर बैठाया । चने और जल पीने के लिये रखे । शिव पार्वती ने पा लिये । जब भक्त के यहॉं से चले, तब पार्वती बोली ~ महाराज ! इसको धन देओ । शिव बोले ~ पार्वती ! आज इसके यहॉं हुण्डी बरसेगी । 
पीछे से एक करोड़पति बनिये ने यह बात सुनी और विचार किया कि यह तो शिव पार्वती हैं, इनका बोल तो जरूर सत्य होगा । तब उस लड़के की दुकान पर गया और बोला, ‘‘साटा कर लो ।’’ बनियां ~ कैसा साटा ? बोला ~ तुम्हारी घर - दुकान हम को दे दो और हमारे घर - दुकान सब तुम ले लो । लिखत पढत हो गई । 
सेठ अपने सारे कुटुम्ब को, जिस हालत में थे, उसी प्रकार लेकर इसकी घर - दुकान में आ गया और यह बनिये का लड़का अपने परिवार को जिस स्थिति में था, उसी स्थिति में लेकर उसके घर - दुकान में चला गया । सेठ सारे दिन देखता रहा कि हुण्डी बरसेगी । ऐसे ही रात भी निकल गईं । दूसरे दिन रोने लगा, और बोला ~ कलियुग आ गया, जो शिव पार्वती भी झूठ बोलने लग गये । मैंने सुना था कि हुण्डी बरसेगी, कहॉं बरसी ?
फौज सीख दई पातसाह, द्रव्य फरिश्ता ढोइ । 
बूझ्यो को तुम ले चले, थैली गहि दो - दोइ ॥ 
द्वितीय दृष्टान्त ~ एक बादशाह था । उसने बहुत सी सेना को बर्खास्त कर दिया । रात्रि को बादशाह सो रहा था, तो परमेश्‍वर ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि इसके खजाने में, जितना धन उस सेना के भाग का है, वह निकाल कर, जहॉं वह सेना गई है, वहीं ले जाकर डाल दो । 
जब बादशाह के सामने खजाने से एक - एक आदमी चार - चार थैलियॉं ले लेकर जाने लगे, तब बादशाह बोले ~ ‘‘भाई ! आप कौन हो ?’’ ‘‘हम खुदा के फरिश्ते हैं ।’’ ‘‘ यह तुम्हारे हाथों में क्या हैं ?’’ ‘‘ धन की थैलियॉं ।’’ ‘‘ कहॉं से लाये हो ?’’ ‘‘तुम्हारे खजाने से ।’’ ‘‘कहॉं ले जाओगे ?’’ ‘‘जहॉं वह सेना गई है । तुम्हारे भाग का छोड़ देंगे, उसके भाग का सब ले जायेंगे ।’’ बादशाह को चेत हो गया । सम्पूर्ण सेना को वापिस ही बुला ली और बोला ~ भाई ! आप लोग यहॉं ही रहो, परमेश्‍वर ने आप के भाग्य का भी इस खजाने में खाना डाल रखा है, खाओ । 
एक बादशाह के चलें, ऊंट चतुर्दश सहँस । 
तऊ बबर्ची ना चले, समय श्‍वान मुख अंश ॥ 
तृतीय दृष्टान्त ~ एक बादशाह था । उसके चौदह हजार ऊँट धन के भरे साल भर में आया करते थे । तब भी बादशाह की बबर्ची नहीं चलती, अर्थात् खान - पान में पूर्ति नहीं होती । 
एक समय दूसरे बादशाह ने उस पर आक्रमण कर दिया । वह युद्ध में हारकर अकेला ही भाग गया । रास्ते में उसे बहुत भूख लगी । एक व्यक्ति ने उसे कुछ कच्चे चावल दिये । वह उन्हें एक हॉंडी में डालकर पकाकर ठंडे कर रहा था । इतने में एक कुत्ता आया और उस हॉंडी को ही उठाकर ले भागा । उसने भागकर उस कुत्ते से वह हॉंडी छुड़वाई और बचे - खुचे कुत्ते के जूठे चावल खाकर अपनी भूख मिटाई । देखो समय - समय की बात है । बादशाह को भी जूठे चावल खाने पड़े । 
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दादू धरती को अम्बर करै, अम्बर धरती होइ । 
निशि अँधियारी दिन करै, दिन को रजनी सोइ ॥६॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वह समर्थ परमेश्‍वर धरती को अम्बर के समान अवकाश देने वाली बना दे और अम्बर को धरती के समान कठोर बना दे । वह चाहे तो अंधेरी काली अमावस्या की रात में सूर्य उगा दे और चाहे तो दिन में अंधेरी काली रात बना दे । ऐसी ईश्‍वर की समर्थाई है । इस समर्थता को परमेश्‍वर के भक्त ही जानते हैं ॥६॥ 
(श्री दादू वाणी ~ समर्थ का अंग) 
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साभार : Bhakti ~ 
एक अमीर आदमी था. उसने समुद्र मेँ अकेले घुमने के लिए एक नाव बनवाई. छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला. आधे समुद्र तक पहुचा ही था कि अचानक एक जोरदार तुफान आया. उसकी नाव पूरी तरह से तहस-नहस हो गई लेकिन वह लाईफ जेकेट की मदद से समुद्र मेँ कूद गया. 
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जब तूफान शांत हुआ तब वह तैरता तैरता एक टापु पर पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नहीं था. टापु के चारों ओर समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. उस आदमी ने सोचा कि अब पूरी जिदंगी मेँ किसी का कभी भी बुरा नहीं किया तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ..? 
उस आदमी को लगा कि भगवान ने मौत से बचाया तो आगे का रास्ता भी भगवान ही बताएगा. धीरे धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते खाकर दिन बिताने लगा. अब धीरे-धीरे उसकी श्रध्दा टूटने लगी भगवान पर से उसका विश्वास उठ गया. उसको लगा कि इस दुनिया मेँ भगवान है ही नहीं ! 
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फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यहीं इस टापू पर बितानी है तो क्यूँ ना एक झोपडी बना लूँ ? फिर उसने झाड की डालियों और पत्तों से एक छोटी सी झोपडी बनाई. उसको लगा कि, हाश, आज से झोपडी मेँ सोने को मिलेगा आज से बाहर नहीं सोना पडेगा. 
रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला बिजलीयाँ जोर जोर से गिरने लगी ! तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर आ गिरी और झोपडी धधकते हुए जलने लगी. यह देखकर वह आदमी टूट गया आसमान की तरफ देखकर बोला तु भगवान नहीं, राक्षस है, तुझ में दया जैसा कुछ है ही नहीं तु बहुत क्रूर है. 
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हताश होकर सर पर हाथ रखकर रो रहा था. कि अचानक एक नाव टापू के पास आई. नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये. और बोले कि, हम तुम्हें बचाने आये हैं, तुम्हारा जलता हुआ झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत मेँ है ! अगर तुम अपनी झोपडी नहीं जलाते तो हमें पता नहीं चलता कि टापु पर कोई है ! उस आदमी की आँखो से आँसु गिरने लगे. उसने ईश्वर से माफी माँगी और बोला कि मुझे क्या पता था कि आपने मुझे बचाने के लिए मेरी झोपडी जलाई थी ! 
अत; दोस्तों भगवान जो भी करते हैं अच्छा ही करते हैं । 
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