मंगलवार, 12 नवंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(पं.दि.- १५/१६)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
.
*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
पंचम दिन ~ 
.
आप मलिन मलीन बनावे, 
राजा से भी नहिं भय खावे । 
समझ गई मैं कारिख खानी, 
नहिं, अविद्या जान सयानी ॥१५॥ 
आं. वृ. - “स्वयं मैली है और दूसरों को भी मैली बनाती है तथा राजा से भी नहीं डरती । बता वह कौन है ?’’ 
वां. वृ. - “यह तो कोयलों की खानि है । उसमें जो जाय उसी के दाग लग जाता है ।’’ 
आं. वृ. - “नहिं, सखि ! यह तो अविद्या है । अविद्या का स्वभाव सब के मन मलीन करने का ही है । तू अविद्या से बचने के लिये निरंतर अविद्या रहित संतों का सत्संग करती रहा कर, नहीं तो वह तेरे स्रदय को भी मलीन और विक्षिप्त कर देगी ।’’ 
.
सखि ! एक ने सब जग खाया, 
अजहु भूखा वह न अघाया । 
है यमराज सखी ! पहचानी नहिं, 
सखि ! लोभ सत्य मम बानी ॥१६॥ 
आं. वृ. - “सब जगत् को खाकर भी एक नहीं तृप्त होता । बता वह कौन है ?’’ 
वां. वृ. -“यमराज ।’’ 
आं. वृ. -“नहिं, सखि ! यह तो लोभ है । लोभ की तृप्ति नहीं होती, यह तो प्रसिद्ध ही है । तू सांसारिक धन धामादि के लोभ में नहीं पड़ना किन्तु भगवत् भजन के लोभ में ही पड़ना । भगवत् भजन का लोभ जितना बढ़ेगा उतना ही अच्छा होगा ।’’ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें