शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(७/८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*शूरातन का अंग २४*
*जन्म लगै व्यभिचारणी, नख शिख भरी कलंक ।*
*पलक एक सन्मुख जली, दादू धोये अंक ॥७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! व्यभिचारिणी स्त्री, पति की आज्ञा न मानने वाली, जन्म से मृत्यु पर्यन्त, नाखून से सिर तक, कलंक पाप से पूर्ण भरी रहती है और अन्त में पतिव्रता स्त्री के समान पति के साथ जलकर सम्पूर्ण शरीर के दोषों से मुक्त हो जाती है । इसी प्रकार सच्चे ब्रह्मनिष्ठ शूरवीर संतजन, विरह अग्नि में अपने अनात्म आपा को जलाकर व अन्तःकरण के मल विक्षेप दोषों से रहित होकर मुक्त हो जाते हैं ॥७॥
दृष्टि कुदृष्टि देखते, कहते बोल कुबोल । 
तब सब ही माता कहै, पति संग बाजे ढोल ॥
.
*स्वांग सती का पहर कर, करै कुटुम्ब का सोच ।*
*बाहर शूरा देखिये, दादू भीतर पोच ॥८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे सती का स्वांग धारण करके, अर्थात् शृंगार करके, फिर परिवार की चिन्ता करे कि मैं पति के साथ जल जाऊँगी तो मेरे परिवार का पीछे क्या हाल होगा ? तो वह पतिव्रता नहीं है । इसी तरह परमेश्‍वर का व्रत धारण करके इन्द्रियों के भोग और वासनाओं की कामना करे, वह सच्चा शूरवीर, निष्काम, अनन्य भक्त नहीं है ॥८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें