*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” ५/६)*
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*दोहा*
भीम नाम कुल गृह रह्यो, गुरु धरि सुन्दर नाम ।
दर्शन तें सुख ऊपजे, पाया मन विश्राम ॥५॥
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*इन्दव छन्द*
*शिष्य श्यामदास - प्रसंग*
राजपूताना इतिहास के अनुसार, बडे सुन्दर दास जी का नाम राजा सुन्दर सिंह जी ही था, किन्तु कई बालकों का उपनाम भी रख देते हैं, जैसे भीमसेन पाण्डवों के भाई थे भीम जैसा कार्य करें तो भीमराज नाम रख सकते हैं उपनाम से प्रसिद्ध हो जावे वास्तव में भीम जैसे कई कार्य किये भी है, असली सुन्दर नाम था तो परम गुरुदेव ने भी असली नाम ही रख दिया, परम गुरु श्री दादू जी को सुन्दर नाम ही अच्छा लगा इसलिये इनका असली नाम सुन्दर दास जी ही है अवीचल मंत्रों में सुन्दर मंत्र भी है जो सुन्दर सुन्दर मंत्र का जाप करता है, वह सुन्दर स्वरुप ही हो जाता है, सबसे सुन्दर ब्रह्म है जाप करते करते वह प्राणी ब्रह्म अपने ब्रह्म स्वरुप को प्राप्त कर लेता है, यानी ब्रह्म में ही विलीन हो जाता है, वह सुन्दर सुन्दर है, कोई सुन्दर है सो पावता है ।
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*सांभर आश्रम में चोर घुसा*
एक समै अपने घर भीतर,
तस्कर रैन भये तिहिं ठोरा ।
लूटत माल नहीं घर संचित,
पुस्तक लेन लगे तब बोरा ।
होवत शब्द जगे सब संतन,
कौन हिले नर भीतर दोरा ।
तस्कर नांह कछू मुख बोलत,
बेगहि दौरि घुसे तिहिं ओरा ॥६॥
एक समय रात्रि को श्री दादूजी के साँभर स्थित आश्रम में एक चोर घुसा । संतो के आश्रम में धनमाल का संचय तो था नहीं, वह चोर पुस्तकें ही बोरी में भरने लगा । खट - पट की आवाज होने से संत जग गये, और बोले - भीतर कोई चोर हलचल कर रहा है । संत जनों को भीतर आता देखकर चोर बिना कुछ बोले उस ओरे(कमरे) में जा छिपा, जहाँ श्री दादूजी ध्यान मग्न भजन कर रहे थे ॥६॥
(क्रमशः)
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