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साभार ~ *"श्री दादूवाणी प्रवचन पद्धति"*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*स्मरण का अंग २/२३*
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दादू जिन प्राण पिण्ड हमकौ दिया, अंतर सेवैं ताहि ।
जे आवै ओसाण सिर, सोई नांव संवाहि ॥२३॥
उक्त साखी के जे आवै ओसाण सिर, इस अंश पर दृष्टांत है -
अकबर बूझी बीरबल, सिरै कौन हथियार ।
हाथी आवत देखि कर, श्वान दियो शिर मार ॥४॥
एक दिन अकबर बादशाह ने बीरबल से पू़छा - हथियार कौन - सा अच्छा है ? बीरबल ने कहा - जो समय पर रक्षा कर सके । अकबर - यह कोई उदाहरण से बताओ । बीरबल - कभी बताऊंगा ।
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एक दिन बीरबल प्रातः यमुना स्नान करके बैठे थे । अकबर बादशाह भी उसी समय हाथी पर बैठा हुआ उधर आ गया और महावत को बोला - बीरबल के ऊपर हाथी को आक्रमण करने के समान चला । उसने चलाया । बीरबल ने देखा हाथी ऊपर ही आ रहा है । अतः उसको हटाने के लिये वहां सोये हुये एक कुत्ते को बीरबल ने उठाकर हाथी के मुख पर मारा । कुत्ता भी चिल्लाया । इससे हाथी हट गया ।
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अकबर ने पू़छा - कुत्ते की क्यों मारी ? तुम ही भाग जाते । बीरबल - आपके प्रश्न का उत्तर दिया है । आपका प्रश्न था - श्रेष्ठ हथियार कौनसा है ? उसका यही उदाहरण है, इस समय कुत्ते से ही रक्षा हुई है । अतः जो समय पर रक्षा करे वही हथियार श्रेष्ठ है, वैसे ही दादूजी ने उक्त साखी से बताया है, जो समय पर परमात्मा का नाम याद आ जाय उसे ही बोलना व उसका ही चिन्तन करना उचित है । कारण ? सभी नामों का नामी एक परमात्मा ही है ।
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