शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(च.दि.- ७/८)

卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
चतुर्थ दिन ~ 
सखी ! एक बलवान अपारा, 
करता सहज काम वह सारा ।
तव नौकर तुझको सुख दाता, 
नहिं, उद्योग जगत विख्याता ॥७॥
आं. वृ. - “एक अति बली है और अनायास ही सब काम कर देता है । बता वह कौन है ?’’ 
वा. वृ. - “तुम्हारा नौकर होगा ।’’ 
आं. वृ. - “नहिं, सखि ! यह तो जगत् विख्यात उद्योग है । उद्योग से सभी काम हो जाते हैं । तू भी उद्योग का आश्रय लेकर अपने कल्याण का साधन करेगी तो शीघ्र ही आत्म स्वरूप ब्रह्म का साक्षात्कार करके जीवन्मुक्त हो जायेगा ।
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सखि ! इक के वश सब ही देखा, 
उससे बचा कोउ नहिं पेखा ।
है यह पेट जान गई प्यारी, 
नहिं सखि ! काल सर्व संहारी ॥८॥
आं. वृ. - “सब संसार एक के वश हुआ देखा जाता है, उससे कोई भी नहीं बच पाता । बता वह कौन है ?’’ 
वा. वृ. “पेट है ।’’ 
आं. वृ. - “नहिं, सखि ! वह तो सर्व का नाशक काल है । तू उस काल को प्रतिक्षण सन्मुख देखा कर । ऐसा करने से कोई भी पाप कर्म तुझसे नहीं हो सकेगा ।’’ 
(क्रमशः)

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