मंगलवार, 12 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(२९/३०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
आगा चल पीछा फिरै, ताका मुँह मा दीठ । 
दादू देखे दोइ दल, भागे देकर पीठ ॥२९॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! आत्म प्राप्ति के विवेक - वैराग्य आदि साधनों में चलकर और फिर वापिस प्रवृत्ति मार्ग में आवे, उसका तो मुँह भी न देखें, क्योंकि उसके दर्शनों से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता । क्योंकि ‘दोइ दल’ कहिये, द्वन्द्वात्मक वृत्ति में उलझ कर आत्म - विमुख होवे, तो उसको आत्म - स्वरूप प्राप्ति संभव नहीं है ॥२९॥ 
दादू मरणां मॉंड कर, रहै नहिं ल्यौ लाइ । 
कायर भाजै जीव ले, आ - रण छाड़ै जाइ ॥३०॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो साधन क्षेत्र का मैदान छोड़कर कायरता से वापिस इस संसार के प्रवृत्ति मार्ग में आवे, वह तो कायर है । जैसे शूरवीरों के ब्रतर पहन कर रण भूमि में जावे और युद्ध को देख करके कायरता से भाग छूटे, तो वह सेनापति और राजा को क्या मुँह दिखलावे ? इसी प्रकार कायर साधक त्याग - भाव से अरण्य(वन) में गया हुआ अपनी साधना बीच में ही छोड़कर वानप्रस्थाश्रम से पुनः घर गृहस्थाश्रम में लौट आता है, वह परमेश्‍वर को नहीं प्राप्त हो सकता ॥३०॥
(क्रमशः)

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