रविवार, 17 नवंबर 2013

= ७७ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सृष्टि क्रम 
दादू ओंकार तैं ऊपजै, अरस परस संजोग । 
अंकुर बीज द्वै पाप पुण्य, इहि विधि जोग रु भोग ॥६॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! प्रथम ओंकार रूप शब्द से ही महत्तत्व की उत्पत्ति होती है और महत्तत्व से सूक्ष्म पंच तन्मात्राएँ होती हैं और पंच तन्मात्रा से पांच महाभूतों की उत्पत्ति होती है और फिर इनके शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, गुणों का अरस - परस संयोग अर्थात् मिलाप रूप पंचीकरण होता है और फिर पंचीकरण से स्थूल सृष्टि की उत्पत्ति होती है । अंकुर कहिए, संस्कार वासना रूप बीज से, अच्छे बुरे कर्म होते हैं और उनके सुख - दुःख आदि फल द्वारा सभी पाप - पुण्यों में बँधे हैं । इस प्रकार ओंकार शब्द ही सृष्टि क्रम का आदि कारण है ॥६॥ 
ओंकार तैं ऊपजै, विनशै बहुत विकार । 
भाव भक्ति लै थिर रहै, दादू आतम सार ॥७॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! प्रणव शब्द रूप जाप की साधना से सहज समाधि रूप दशा तक पहुंच कर भाव - भक्ति से लय वृत्ति द्वारा, आत्म - स्वरूप में स्थिर रहो । इस प्रकार सम्पूर्ण विकारों से छुटकारा पाकर फिर वह साधक आत्मा की प्राप्ति करता है ॥७॥ 
पहली किया आप तैं, उत्पत्ति ओंकार । 
ओंकार तैं ऊपजै, पंच तत्त्व आकार ॥८॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सृष्टि के आदि में परमात्मा ने पहले अपने आपसे ओंकार उत्पन्न किया । फिर ओंकार शब्द से पॉंच तत्त्व आकार रूप में उत्पन्न होते हैं ॥८॥ 
(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग) 
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Sanatana Dharma - "The Eternal Way" 
जब कोई अस्तित्व में गहरे जाता है जड़ों तक, बहुत गहरे, तो वहां विचार नहीं होते। विचार करने वाला भी वहां नहीं होता। विषय-बोध भी वहां नहीं होता, और न कर्ता का बोध ही होता है, परन्तु फिर भी, सब कुछ होता है। उस विचारशून्य, कर्ताशून्य क्षण में, एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह ध्वनि ओम की ध्वनि से मिलती है–मात्र मिलती है। वह ओम नहीं है इसीलिए वह मात्र एक संकेत है। हम उसे फिर से उत्पन्‍न नहीं कर सकते। वह करीब-करीब मिलती-जुलती ध्वनि है। इसलिए वह कितनी ही ध्वनियों का समस्वर है, परन्तु सदैव ही ओम के सबसे अधिक पास है। 
मुसलमानों व ईसाइयों ने उसे आमीन की तरह पहचाना है। वह ध्वनि जो कि सुनाई देती है, जब कि सब कुछ खो जाता है और केवल ध्वनि गूंजती रह जाती है ओम् से मिलती-जुलती होती है वह आमीन से भी मिल सकती है। अंग्रेजी में बहुत से शब्द हैं–ओम्निप्रजेंट, ओम्निशियन्ट, ओम्निपोटेंट – यह ओम्नि मात्र ध्वनि है। वास्तव में ओम्निशियन्ट का अर्थ होता हैः वह जिसने कि ओम् को देखा हो, और ओम् सब के लिए ही संकेत है। ओम्निपोटेंट का अर्थ होता है वह जो कि ओम् के साथ एक हो गया है, क्योंकि वही सब से बड़ी संभावना है सारे ब्रह्म की ध्वनि में भी मौजूद है। और वह ध्वनि सब को चारों तरफ से घेरे है, सर्व के उपर से बह रही है। ओमनिशियेन्ट, ओम्निप्रजेंट व ओम्निपोटेंट में जो ओम्नि है वह ओम् है। आमीन भी ओम् है। अलग-अलग साधक, अलग-अलग लोग भिन्‍न-भिन्‍न पहचान को पहुंचे हैं। परन्तु वे सब किसी भी प्रकार से ओम् से मिलते-जुलते हैं।

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