सोमवार, 18 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(४१/४२)

 ॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*जिसका है तिसको चढै, दादू ऊरण होइ ।*
*पहली देवै सो भला, पीछे तो सब कोइ ॥४१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह मनुष्य शरीर जिस परमेश्‍वर का दिया हुआ है, निष्काम शुभ कर्मों के द्वारा, यह उसी को देकर उऋण हो । इस प्रकार जो साधक पुरुष, जीवित काल में ही अर्पण करें, वही भला है । पीछे अन्त समय में तो, सभी का छीन लिया जाता है । फिर आगे क्या पता कौनसा शरीर दें ॥४१॥
सर्व वस्तु जगदीश की, जग न समरर्पै ताहि । 
तन त्यागे, त्यागै सबै, भगवत विमुख हि जाहि ॥
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*सांई तेरे नाम पर, शिर जीव करूं कुर्बान ।*
*तन मन तुम पर वारणै, दादू पिंड पराण ॥४२॥*
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरु महाराज कहते हैं कि हे परमेश्‍वर ! आपका नाम ही हमारे भक्तों का आधार है । और आपकी प्रेमाभक्ति का अमृत - पान करने को हम तन - मन की सम्पूर्ण सौंज, सर्व आपके समर्पण करते हैं और आपका नाम स्मरण मांगते हैं ॥४२॥
जर, जोध न अपनाइ धन, हरि सूं बेमुख होत । 
‘विदुर’ जु तन धन अरपि हरि भक्तिलीन भव पोत ॥
(क्रमशः)

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