रविवार, 17 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(३९/४०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरातन*
*दादू तन मन काम करीम के, आवै तो नीका ।*
*जिसका तिसको सौंपिये, सोच क्या जी का ॥३९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब यह तन - मन सर्वस्व प्रभु के अर्पण कर दिया, तो फिर अति उत्तम है । फिर तो केवल परमेश्‍वर की समर्थाई का अर्थात् सर्वज्ञता का ही विचार कर कि जिस परमेश्‍वर का यह सब कुछ है, तो उसको देने में मेरा है ही क्या ? तब फिर जीव का उद्धार होने में संदेह नहीं है ॥३९॥
तृणं द्रव्यं विरक्तस्य, शूरस्य जीवनं तृणम् । 
साधकस्य तृणं नारी जगत् तृणं च ज्ञानिनः ॥
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*जे शिर सौंप्या राम को, सो शिर भया सनाथ ।*
*दादू दे ऊरण भया, जिसका तिसके हाथ ॥४०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मनुष्य - जन्म पाकर, सच्चे शूरवीर साधक, तन मन का अहंकार रूपी शिर परमेश्‍वर के अर्पण कर दिया, तो फिर वह सिर परमेश्‍वर का ही हो चुका । ब्रह्मऋषि सतगुरु देव कहते हैं कि इस प्रकार साधक परमेश्‍वर के अर्पण करके उऋण हो गयेअर्थात् जिसका था उसी के हाथों में सौंप दिया ॥४०॥
त्वदीयं वस्तु हे स्वामिन्, तुभ्यमेव समर्पितम् ॥
(क्रमशः)

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