रविवार, 17 नवंबर 2013

= ष. त./१-२ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” १/२)* 
**मनोहर - छन्द** 
**बालिका पलट बालक हो गया कर तन अश्चर्यजनक** 
एक समै वैश्य सुता पंचवर्ष लघु गाता, 
जुदि जुदि संतन को करत प्रणाम जू । 
स्वामी भक्ति देखि लाल, मुख तें कह्यो है बाल, 
माता कहे बाल नांही, बालिका है वाम जू । 
दादू कहें - बाला नाहीं, यह तो बाल भयो यहीं, 
बाला को पलटि तन होत बाल नाम जू । 
कन्या तें पलटि करि, तिन बाल रूप धरि, 
साँभर अचम्भो होत धन्य दादूराम जू ॥१॥ 
एक दिन पाँच वर्षीय एक वैश्य कन्या, संतों को झुक - झुक कर अलग - अलग प्रणाम कर रही थी । उसकी संतों के प्रति भक्ति देखकर स्वामीजी ने कहा - देखो, यह बालक कितना श्रद्धालु है ? साथ में आई उसकी माता ने कहा - स्वामीजी ! यह तो बालिका है । श्री दादूजी ने कहा - अब तो यह बालक रूप हो गया है । संत वचनों से वह बाला पलट कर बालक बन गया - इस अद्भुत घटना से साँभर शहर में आश्चर्य की चर्चायें होने लगीं, स्वामीजी की जय जयकार होने लगी ॥१॥ 
**इन्दव छन्द** 
संत कहें - गुरु ! कौन सता कर, 
क्यों तन होव हिं बाल कुमारा । 
आप कही - हमको सुध नांहि जु, 
या तन बाल कियो करतारा । 
यों सुनि लोग चहूं दिशि आवत, 
दर्शन को उलटे बहु सारा । 
नैन निहार भये नर कृतकृत, 
भीर रहै दिन रैन हि द्वारा ॥२॥ 
शिष्य संतों ने पूछा - गुरुजी ! यह चमत्कार आपने कौन सी सिद्धि सत्ता से किया है कि - बाला पलट कर बालक बन गया । स्वामीजी ने कहा - इस परिवर्तन की हमें कुछ सुध नहीं, यह तो सृष्टिकर्ता की प्रेरणा व माया से सब कुछ हुआ है । उन्हीं की सत्ता से मेरे मुख से ‘बालक’ - शब्द उच्चरित हुआ । इस विचित्र घटना को सुन कर दर्शनार्थी चारों दिशाओं से आने लगे, अत्यन्त भीड़ होने लगी । भक्तजन स्वामीजी के दर्शनों से कृतार्थ होने लगे ॥२॥ 
(क्रमशः)

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