*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” १/२)*
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**मनोहर - छन्द**
**बालिका पलट बालक हो गया कर तन अश्चर्यजनक**
एक समै वैश्य सुता पंचवर्ष लघु गाता,
जुदि जुदि संतन को करत प्रणाम जू ।
स्वामी भक्ति देखि लाल, मुख तें कह्यो है बाल,
माता कहे बाल नांही, बालिका है वाम जू ।
दादू कहें - बाला नाहीं, यह तो बाल भयो यहीं,
बाला को पलटि तन होत बाल नाम जू ।
कन्या तें पलटि करि, तिन बाल रूप धरि,
साँभर अचम्भो होत धन्य दादूराम जू ॥१॥
एक दिन पाँच वर्षीय एक वैश्य कन्या, संतों को झुक - झुक कर अलग - अलग प्रणाम कर रही थी । उसकी संतों के प्रति भक्ति देखकर स्वामीजी ने कहा - देखो, यह बालक कितना श्रद्धालु है ? साथ में आई उसकी माता ने कहा - स्वामीजी ! यह तो बालिका है । श्री दादूजी ने कहा - अब तो यह बालक रूप हो गया है । संत वचनों से वह बाला पलट कर बालक बन गया - इस अद्भुत घटना से साँभर शहर में आश्चर्य की चर्चायें होने लगीं, स्वामीजी की जय जयकार होने लगी ॥१॥
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**इन्दव छन्द**
संत कहें - गुरु ! कौन सता कर,
क्यों तन होव हिं बाल कुमारा ।
आप कही - हमको सुध नांहि जु,
या तन बाल कियो करतारा ।
यों सुनि लोग चहूं दिशि आवत,
दर्शन को उलटे बहु सारा ।
नैन निहार भये नर कृतकृत,
भीर रहै दिन रैन हि द्वारा ॥२॥
शिष्य संतों ने पूछा - गुरुजी ! यह चमत्कार आपने कौन सी सिद्धि सत्ता से किया है कि - बाला पलट कर बालक बन गया । स्वामीजी ने कहा - इस परिवर्तन की हमें कुछ सुध नहीं, यह तो सृष्टिकर्ता की प्रेरणा व माया से सब कुछ हुआ है । उन्हीं की सत्ता से मेरे मुख से ‘बालक’ - शब्द उच्चरित हुआ । इस विचित्र घटना को सुन कर दर्शनार्थी चारों दिशाओं से आने लगे, अत्यन्त भीड़ होने लगी । भक्तजन स्वामीजी के दर्शनों से कृतार्थ होने लगे ॥२॥
(क्रमशः)
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