मंगलवार, 19 नवंबर 2013

= ष. त./५-६ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” ५/६)* 
**गलताजी महन्त का चार साधु सांभर भेजना चिट्ठी सहित** 
सिद्ध श्री उपमा सब ओपत, 
पूरण संत अछेद्य अगादु । 
शोभित पंथ महातम श्रीयुत, 
दादु दयालु जु जोग लिखादू । 
हौं गलता - आचार्य जु क्रिशन, 
तां करि धोक पठें सम्वादू । 
जानता हो परमेश्वर साहिब, 
तो ढिग चार पठे हम साधू ॥५॥ 
सिद्ध श्री सर्व उपमा - विराजित पूर्ण संत श्री दादूजी ! आपके सिद्धान्त अछेद्य एवं अगाध है । हे श्रीयुत ! आपका पंथ महान् है । आपके योग्य लिखा जाता है कि - मैं गलता - आश्रम का आचार्य कृष्णानन्द धोक सहित आपको समवाद - सन्देश भिजवा रहा हू । सुना है कि आप एकमात्र परमेश्वर को ही अपना साहिब मानते है इस विषय में मेरे भेजे चार साधु आपसे वार्ता करेंगे ॥५॥ 
एक हि बार दया करि के अब, 
आय यहाँ हम पास रहाई । 
जो कहुं नांहि बने तु आवन, 
संत कहें जु - वही चित लाई । 
काम हु काज हुवै हम लायक, 
सो लिखिये तुम कागज पाई । 
सम्वत सोलह सौ इकतीसहिं, 
कार्तिक ही सुदि तेरस थाई ॥६॥ 
एक बार दया करके यहाँ गलता के आश्रम में पधारो, हमारे पास रहो । यदि आपका आगमन किसी कारण नहीं बन पाये तो हमारे भेजे हुये संत जो कहें - उस पर ध्यान देना । हमारे योग्य कोई कार्य हो तो पत्रोतर में लिखना ।(सम्वत् १६३१, कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी - तिथि) ॥६॥ 
(क्रमशः)

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