*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“षष्ठम - तरंग” ५/६)*
.
**गलताजी महन्त का चार साधु सांभर भेजना चिट्ठी सहित**
सिद्ध श्री उपमा सब ओपत,
पूरण संत अछेद्य अगादु ।
शोभित पंथ महातम श्रीयुत,
दादु दयालु जु जोग लिखादू ।
हौं गलता - आचार्य जु क्रिशन,
तां करि धोक पठें सम्वादू ।
जानता हो परमेश्वर साहिब,
तो ढिग चार पठे हम साधू ॥५॥
सिद्ध श्री सर्व उपमा - विराजित पूर्ण संत श्री दादूजी ! आपके सिद्धान्त अछेद्य एवं अगाध है । हे श्रीयुत ! आपका पंथ महान् है । आपके योग्य लिखा जाता है कि - मैं गलता - आश्रम का आचार्य कृष्णानन्द धोक सहित आपको समवाद - सन्देश भिजवा रहा हू । सुना है कि आप एकमात्र परमेश्वर को ही अपना साहिब मानते है इस विषय में मेरे भेजे चार साधु आपसे वार्ता करेंगे ॥५॥
.
एक हि बार दया करि के अब,
आय यहाँ हम पास रहाई ।
जो कहुं नांहि बने तु आवन,
संत कहें जु - वही चित लाई ।
काम हु काज हुवै हम लायक,
सो लिखिये तुम कागज पाई ।
सम्वत सोलह सौ इकतीसहिं,
कार्तिक ही सुदि तेरस थाई ॥६॥
एक बार दया करके यहाँ गलता के आश्रम में पधारो, हमारे पास रहो । यदि आपका आगमन किसी कारण नहीं बन पाये तो हमारे भेजे हुये संत जो कहें - उस पर ध्यान देना । हमारे योग्य कोई कार्य हो तो पत्रोतर में लिखना ।(सम्वत् १६३१, कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी - तिथि) ॥६॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें