बुधवार, 20 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(४५/४६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*खेलै शीश उतार कर, अधर एक सौं आइ ।*
*दादू पावै प्रेम रस, सुख में रहै समाइ ॥४५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! शूरवीर साधक, मलिन अहंकार रूपी अपना मस्तक उतार कर, अभेद निश्‍चय रूप खेल, ब्रह्म के साथ खेलता है और एकत्व भाव को प्रेमा आनन्द को पान करके, सुख स्वरूप ब्रह्म में ही समा कर रहता है । फिर वह आवागमन से मुक्त हो जाता है ॥४५॥
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*मरण भय निवारण*
*दादू मरणे थीं तूं मत डरै, सब जग मरता जोइ ।*
*मिल कर मरणा राम सौं, तो कलि अजरावर होइ ॥४६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! प्राण पिण्ड के वियोग रूप मरने से नहीं डरना, क्योंकि सारा जगत ही मरता जन्मता दीख रहा है । परन्तु मरना उसी का सार्थक है, जो जीवित काल में ही राम से मिल गये हैं और फिर शरीर को छोड़ा है । वह इस कलिकाल में अजर - अमर भाव को प्राप्त हो गये हैं ॥४६॥
(क्रमशः)

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