बुधवार, 20 नवंबर 2013

= ष. त./७-८ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” ७/८)* 
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उपर नाम जु श्रीयुत महंतहि, 
दादुजी जोग हिं साँभर थाना ।
यों लिख पत्र दियो निज साधुन, 
होत विदा जब ऊगत भाना ।
आयसु पाय चले चहुं साधक, 
बेगहि जावत ले निज बाना ।
साँझ समै पहुंचे पुर साँभर, 
देखि दशा तप तेज बखाना ॥७॥ 
इस तरह पत्र लिखकर उसे दूसरे कागज में लपेटा । ऊपर(श्रीयुत महन्त दादूजी, योग्य लिखी साँभर थाना) अंकित किया, फिर उक्त चारों साधुओं को देकर सूर्य उदय होते ही विदा कर दिया । आज्ञा पाकर वे साधु शीध्र ही चल दिये । अपना भेष - बाना सजाये सन्ध्या समय तक साँभर पहुँच गये वहाँ श्री दादूजी का तप तेज प्रभाव देखकर व्याख्यान करने लगे ॥७॥ 
*संतों ने श्री दादूजी की महिमा गाई*
संत परात्पर पावन पंथहि, 
दें उपदेश उद्धार दुनी है ।
तुर्क चिताय किये अपने वश, 
चारु हि वर्ण सुभक्तिबनी है ।
जो उपमा सुनि हैं गलता - मधि, 
सो हम नैन निहार गुनी है ।
धन्य दयालु थप्यो अपनो मत, 
निर्गुण पंथ हिं महन्त मुनी है ॥८॥ 
हे स्वामी जी ! आप परात्पर संत हैं, आपका पंथ पावन है, आपने सदुपदेश देकर दुनिया का उद्धार किया है, दुष्ट तुर्को को भी चमत्कार - चेतना से वश में कर लिया है । चारों ही वर्ण जातियां आपके भक्त बन गये हैं । हमने जो उपमा शोभा गलता में रहते हुये सुनी थी, वह आँखों से प्रत्यक्ष देखकर ही गुणगान कर रहे हैं । हे दयालु आपने जो निर्गुण पंथ की स्थापना की है, वह अति उत्तम है । आप महान् ॠषि मुनि है ॥८॥ 
(क्रमशः)

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