गुरुवार, 21 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(४७/४८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*दादू मरणे थीं तूं मत डरै, मरणा अंत निदान ।*
*रे मन मरणा सिरजिया, कहले केवल राम ॥४७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! मरने से नहीं डरना, क्योंकि जो उत्पन्न हुआ है, वह तो सब परिवर्तनशील है ही । हे मन ! मरना तो स्थूल शरीर के साथ ही जन्म लेता है । निष्काम भाव से राम का स्मरण करके, जीवित काल में ही, इस मरने से मुक्त हो जा ॥४७॥
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*दादू मरणे थीं तूं मत डरै, मरणा पहुँच्या आइ ।*
*रे मन मेरा राम कह, बेगा बार न लाइ ॥४८॥*
टीका ~ हे मन ! मरने से अब क्या डरता है ? मरना तो अत्यन्त नजदीक आ गया है । अब तो हे हमारे मन ! मरने से मुक्त होना है तो, राम का स्मरण कर और जल्दी कर, इसमें तनिक भी देर मत कर ॥४८॥
(क्रमशः)

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