*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” ९/१०)*
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**आज्ञा पाकर गोपालदास जी ने कागज पढ़ा**
दादू कहें - तुम क्यूं करि आवत,
कारण कौन, कहो हम आगे ।
नीक हिं महन्त प्रणाम कहावत,
कागज ताहिं धर्यो मुख आगे ।
आयसु पाय गोपाल लियो कर,
बांचत ताहिं कहे अनुरागे ।
कागज बांच कही तब शिष्य हु,
सन्मुख यों कहिये बड़भागे ॥९॥
श्री दादूजी ने पूछा - भाई ! तुम क्यों आये हो ? अपना प्रयोजन हमारे सम्मुख कहो । आगन्तुक साधुओं ने कहा - गलता महन्त जी ने आपको प्रणाम कहलवाया है, और यह कागज - सन्देश भिजवाया है । यों कह कर कागज सम्मुख धर दिया । तब गुरु आज्ञा पाकर गोपाल दास शिष्य संत ने बाँच कर सुनाया । फिर साधुओं ने मौखिक निवेदन किया ॥९॥
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**साधुओं ने गलता ले जाने का आग्रह किया**
एकहि बार दया करिके अब,
आप यहां दिन रैन रहाई ।
जो कहुं नांहि बने तुम आवन,
संत कहें - करियो चित लाई ।
यों हि सुनाय कही चहुं साधुन,
संत कहें - तुम महंत बुलाई ।
एकहि बार चलो गलता अब,
आप बुलावन मोहि पठाई ॥१०॥
स्वामीजी ! कृपा करके एक बार गलता - पधारिये । आपको बुलाने के लिये ही महन्त जी ने हमें भेजा है । चाहे एक दिन - रात ही वहाँ ठहरना ॥१०॥
(क्रमशः)
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