रविवार, 3 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(११/१२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*सती जल कोइला भई, मुये मड़े की लार ।*
*यों जे जलती राम सौं,साचे संग भर्तार ॥११॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सती पतिव्रता स्त्री मरे हुए मुर्दे के साथ जलकर कोयला हो जाती है । यदि वह सच्चे राम के साथ विरह रूप अग्नि में जलती तो, सच्चे रामरूपी भर्तार को प्राप्त कर लेती ॥११॥
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*मुये मड़े सौं हेत क्या, जे जीव की जाणै नांहि ।*
*हेत हरि सौं कीजिये, जे अन्तरजामी मांहि ॥१२॥*
टीका ~ अब मृतक मुर्दे से क्या प्रीति करती है ?, जो तुम्हारे अन्तःकरण की प्रीति को नहीं जानता । अब इस प्रकार का हेत कहिए प्रेम, हरि परमेश्‍वर से कर, जो तेरे अन्दर, अन्तर्यामी रूप से स्थित हो रहे हैं ॥१२॥
(क्रमशः)

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