रविवार, 3 नवंबर 2013

= प. त./९-११ =


*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” ९/११)* 
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*दोहा ~ श्री दादू जी के अनंत शिष्य बने* 
अब वरणौं पुनि शिष्य जो, लें गुरु का उपदेश । 
दर्शन करि पावन भये, उपजी प्रीति विशेष ॥९॥ 
स्वामी की महिमा अमित, परसिध देश विदेश । 
सुनि सुनि सब जन आव हीं, शिर कर धारि तपेश ॥१०॥ 
अब मैं उन शिष्यों का वर्णन कर रहा हूं, जो स्वामीजी का उपदेश लेकर पावन हो गये । स्वामीजी की महिमा, प्रसिद्धि देश देशान्तर में फैलने लगी । सुन - सुनकर भक्तजन आने लगे । स्वामीजी शिर पर हाथ धरकर उन्हें कृतार्थ करते रहते ॥९/१०॥ 
*मनोहर छन्द* 
*शिष्य माधवदास - प्रसंग* 
विप्र सनाढ्य सीकरी शहर मधि, 
तीरथ करन काज घर तजि आवहि । 
सीकरी तें आगरे, मथुरा में आये हम, 
मथुरा तें गोवर्धन, भरतपुर जावही । 
अलवर राजगढ़ बसवा में आय रहे, 
दादूजी का नाम सुनि भयो मन भाव ही । 
बसवा तें वेद दिन, सांभर में आये हम, 
स्वामीजी को देखि नैन, माधो शीश नाव ही ॥११॥ 
मैं सीकरी शहर का रहने वाला सनाढ्य ब्राह्मण तीर्थ यात्रा के लिये घर से निकला । आगरा, मथुरा, गोवर्धन, भरतपुर, अलवर, राजगढ आदि स्थानों में घूमता हुआ बसवा पहुँचा । वहाँ श्री दादूजी का नाम सुनकर मन में दर्शनों का भाव जगा । चार दिन की पंथ यात्रा के बाद मैंने साँभर पहुँचकर स्वामीजी के दर्शन किये, चरणों में शीश निवाकर निवेदन किया - हे गुरुदेव ! माधव का प्रणाम स्वीकार करो ॥११॥ 
(क्रमशः)

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