बुधवार, 6 नवंबर 2013

अगम अगोचर राखिये २/११४

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 #श्रीदादूवाणी०प्रवचन०पद्धति 卐* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*स्मरण का अंग २/११४*
.
*अगम अगोचर राखिये, कर कर कोटि जतन्न ।*
*दादू छाना क्यों रहे, जिस घट राम रतन्न ॥११४॥*
उक्त साखी पर दृष्टांत – 
कोल्हू के संघात में, रहे सन्यासी सिद्ध ।
ताहि मुढ़ मारन लगे, पेली शिर में खद्ध ॥१९॥
एक ग्राम के बाहर गन्ने के खेतों में अनेक कोल्हू चलते थे और गुड़ भी बनता था । वहां ही एक खेत के वृक्ष के नीचे एक सन्यासी सिद्ध संत भी भजन करते थे । एक दिन एक सन्यासी नागों का अखाड़ा उक्त कोल्हू समुदाय के पास के मार्ग से निकला । 
.
नागों के महन्त ने नागों को कहा - इनसे गन्ने और गुड़ मांग लाओ । नागे गये और मांगने पर सबने अपनी शक्ति के अनुसार दे दिया । किन्तु नागों ने कहा - और दो । तब भी दिया । फिर भी मांगा तो उक्त सन्यासी सिद्ध संत ने कहा - इनकी शक्ति अनुसार उन्होंने दे दिया है, अब इनको तंग मत करो । तब नागों ने सोचा - ये सब इसी के शिष्य हैं । अतः इसे बाँध कर पीटो तब यह इनसे भेंट भी दिलायेगा । 
.
जब वे नागे संत को पीटने लगो तो जो उन्होंने गन्ने मांगे थे, उनकी पेलियों की ही चोटें नागों पर पड़ने लगी । यह उन संतजी की शक्ति देखकर सबने पहचान लिया कि ये सिद्ध संत हैं । नागों ने भी उनसे क्षमा मांगी और प्रणाम करके चले गये । यही उक्त साखी में कहा है कि - कोई संत अपने को कितना ही छिपाये किन्तु जिसके हृदय में रामरूप रत्न का चिन्तन होता रहता है, वह छिपता नहीं जैसे उक्त संत अपने को छिपाकर ही रखते थे किन्तु प्रकट हो ही गये ।
॥इति स्मरण का अंग २ समाप्त॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें