सोमवार, 4 नवंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू राम रसाइन नित चवै, हरि है हीरा साथ । 
सो धन मेरे साइयां, अलख खजाना हाथ ॥ 
हिरदै राम रहै जा जन के, ताको ऊरा कौण कहै । 
अठ सिधि, नौ निधि ताके आगे, सनमुख सदा रहै ॥ 
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साभार : Savita Savi Lumb ~ 
यह राम - नाम अमूल्य है देवियों और सज्जनों ! इसका कोई मूल्य नहीं, कोई कीमत नहीं है ! यह अनमोल निधि गैस, जो हमारे गुरुजनों ने हमें दी है ! क्योंकि यह हमें सहज से प्राप्त हो गई है, इसलिये हम इसका मूल्य नहीं जानते ! माता का मंदिर हो या हनुमान जी का, जहाँ जाना थोड़ा कठिन हो , जहाँ का मार्ग दुर्गम हो, वहाँ लोग ज्यादा जाना पसंद करते हैं, न कि वहाँ जहाँ सीधी कार गेट तक चली जाए ! वहाँ भी जाते हैं लोग लेकिन कम संख्या में ! 
दृष्टान्त -- महाराजा विक्रमादित्य के समय की बात है, एक बड़ा ही संतुष्ट ब्राह्मण जिसे किसी चीज़ की आवश्यकता अनुभव नहीं होती, अपने परिवार के सा बड़े सुख से रह रहा है ! एक दिन उसकी धर्मपत्नी ने उसे जबरदस्ती घर से बाहर भेज दिया, जाओ कुछ कमा कर लाओ ! ब्राह्मण बेमन से घर से निकल पड़ा है ! सीधा जंगल की तरफ़ चल पड़ा है ! ब्राह्मण है जंगल की तरफ़ ही जाएगा ! किसी Fish Market या Meat Market की तरफ़ तो जाएगा नहीं ! 
जंगल में जाते ही एक संत महात्मा मिल गए हैं ! संत के सामने अपनी व्यथा रखी है ! महाराज जी मुझे किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं है, मेरी पत्नी ने जबरदस्ती भेज दिया है ! संत ने एक पत्र लिखा है, और कहा कि जाकर राजा विक्रमादित्य को सौंप देना ! ब्राह्मण वह पत्र लेकर राजा के पास चला गया है ! पत्र में संत ने लिखा है - "आपको आध्यात्मिक शिक्षा लेने का बड़ा शौक था, अब समय आ गया है ! इस ब्राह्मण को सारा राज्य सौंप कर चले आओ ! राजा ने तुरन्त वन को जाने की तैयारी कर ली है और सारा राजपाट उस ब्राह्मण को सम्भालने का आदेश दे दिया है ! 
ब्राह्मण सोचता है कि ऐसा उस संत के पास क्या है जो राजा को राजपाट से भी कीमती है, जिसे राजा छोड़कर संत के पास जा रहा है ! अवश्य उसके पास इससे भी कीमती वस्तु होगी, जो यह राजा पाने को उतावला है ! ब्राह्मण राजा से कहता है, कि राजन् राजपाट सम्भालने से पहले मैं उस संत से एक बार भेँट करना चाहता हूँ ! आज्ञा पाकर ब्राह्मण उस संत के पास पहुँच गया है ! "महाराज, ऐसा क्या है जो राजा के पूरे राजपाट से भी बढ़कर है ?" 
"मेरे पास राम - नाम है"- संत उत्तर देते हैं ! "तो महात्मन मुझे भी यह राम - नाम ही दे दो मुझे राज पाट नहीं चाहिये" ! इतनी ऊँची चीज़ है यह राम - नाम साधकजनों ! 


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