मंगलवार, 12 नवंबर 2013

आशिक माशुक हो गया ३/१४७

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विरह का अंग ३/१४७*
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आशिक माशुक हो गया, इश्क कहावे सोइ ।
दादू उस माशुक का, अल्लह आशिक होइ ॥१४७॥
दृष्टांत - मनहर - 
औलिया निजामुद्दीन बावड़ी करावे रात,
नीर दीप जोय के, दिखाई करामात को ।
आय के कलंद्रबली छीन लेय गये ऊठ,
आवत मुरीद पूछा कहा उन रात को ।
गावत अनूप जा रिझाया उस बालक को,
देखत अखंड ताहि पावे नित्य शांति को ।
बैठ के उछंग में माशुक कहा दाढी ऐंचि ।
औलिया निजामु को कहाया बड़ी भाँति को ॥१५॥
निजामुद्दीन एक बावड़ी बनाने लगे थे । किन्तु उन्ही दिनों में एक सरकारी भवन बनने लगा । अतः कारीगर उस भवन के बनाने में लग गये । निजामुद्दीन ने कारीगरों को कहा - हमारे रात को काम करो तुमको मजदूरी इच्छानुसार देंगे । तब वे रात को बावड़ी का काम करने लगे, किन्तु दिन में भवन बनाने के समय उनको नींद आती थी । 
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कारण पू़छने पर ज्ञात हुआ, रात को निजामुद्दीन की बावड़ी बनाते हैं । वे रात को तेल और बिनौले कूण्डों में भरकर जला देते हैं, उससे पहुत प्रकाश हो जाता है । सरकार ने उनको तैल देने पर प्रतिबन्ध लगा दिया । निजामुद्दीन सिद्ध ते अतः उन्होंने पानी और बिनौलों से प्रकाश करना आरम्भ कर दिया । यह उनकी सिद्धि देखकर उन पर और प्रतिबन्ध नहीं लगाया । 
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कलंदरबली को इनकी कारामात का पता लगा तो वे इनकी करामात छीनने को इनके निवास स्थान पर आये और बोले - निजामुद्दीन ! तब निजामुद्दीन ने कहा - हां । हां कहते ही उनकी करामात कलंदरबली के पास चली गई और कलंदरबली भी चले गये । आज रात को निजामुद्दीन के पानी से दीप नहीं जले । प्रकाश न होने से कारीगर लौट गये । निजामुद्दीन भी समझ गये कि मेरी सिद्धि को कलंदरबली ले गये । 
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फिर निजामुद्दीन के मुरीद(शिष्य) मीरकुसरा ने गुरु को उदास देखकर उदासी का कारण पू़छा - आपकी करामात पुनः आपके पास कैसे आये, यह मुझे बताइये मैं उसे लौटाने का प्रयत्न करुंगा । निजामुद्दीन ने कहा - यदि कलंदरबली अपने मुख से यह कह दे कि - औलिया निजामुद्दीन सिद्ध । तो मेरी करामात मेरे पास आ जायेगी । फिर मीरकुसरा ने जहां कलंदरबली निवास करते थे वहां आकर पता लगाया कि कलंदरबली किसकी बात मानते हैं । 
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फिर किसी से उसे ज्ञात हुआ कि अमुक लड़के ने इनके पास सितार देखकर पू़छा - आप गायक हैं क्या ? मीरकुसरा - हां । लड़का - तो कु़छ गाकर सुनाओ । मीरकुसरा ने एक दो राग सुनाई । जिस लड़के को देखकर कलंदरबली अखंड शांति नित्य ही प्राप्त करते थे उस लड़के को मीरकुसरा ने रिझा लिया फिर लड़का अति प्रसन्न होकर बोला - मांगो । मीरकुसरा ने कहा - कलंदरबली के मुख से कहलवादे कि - औलिया निजामुद्दीन सिद्ध कहलादो । यही माँगता हूं । 
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लड़का - आप कलंदरबली के स्थान पर चलें, मैं भी आता हूँ । मीरकुसरा कलंदरबली के पास गए और सलाम करके बैठ गए । इतने में लड़का भी आ गया और मीरकुसरा को कहा - कु़छ गाकर सुनाओ । गायक ने २-४ राग सुनाई । लड़का बोला - मांगो । मीरकुसरा ने कहा - कलंदरबली अपने मुख से कह दें कि ओलिया निजामुद्दीन सिद्ध । कलंदरबली यह नहीं कहूँगा । और कु़छ माँग । मीरकुसरा - यही चाहता हूँ, अन्य कुछ नहीं ।
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फिर माशुक(प्रेम पात्र) लड़के ने कलंदरबली की गोद में बैठ कर अपने दोनों हाथों से उनकी दाढ़ी हिलाते हुए कहा - बोलो - औलिया निजमुद्दीन सिद्ध । कलंदरबली ने कहा - तेरा बाप सिद्ध । फिर कहा - बोलो - औलिया निजामुद्दीन सिद्ध । कलंदरबली ने कहा - तेरा दादा सिद्ध । उक्त प्रकार सात पीढ़ी को सिद्ध कह दिया । लड़के ने आठवीं बार कहा - बोलो औलिया निजामुद्दीन सिद्ध । तब कलंदरबली ने कहा - औलिया निजामुद्दीन सिद्ध । इतना कहते ही निजामुद्दीन के पानी के कूंडे जलने लगे । कहा भी है - 
शिष्य करे तो ऐसा करिये जैसे किया निजाम ।
पीर कहाया गुरु को, यह मरदों का काम ॥
१४७ की साखी में कहा है । आशिक(प्रेमी) माशूक(प्रेम पात्र) हो जाय तब ही वह प्रेम सच्चा माना जाता है । पहले भगवान् से भक्त प्रेम करते हैं, पहले लड़के ने कलंदरबली से प्रेम किया था किन्तु पीछे कलंदर बली का लड़के में अटूट प्रेम हो गया था ।

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