#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू सहजैं सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम ।
काहे को कलपै मरै, दुःखी होत बेकाम ॥२॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! प्रारब्ध कर्म अनुसार धीरे - धीरे जो कुछ राम ने इस स्थूल शरीर का भोग रचा है, प्राप्ति - अप्राप्ति, सुख - दुःख आदि में संत किसी प्रकार का हर्ष - शोक नहीं करते हैं और परमेश्वर की समर्थाई में विश्वास करके कर्म - फल के निमित्त चिन्ता नहीं करते । अनुकूल और प्रतिकूल उनको एक समान हैं ॥२॥
क्यों कलपै बेकाम को, चंचल राखै चित्त ।
मिटत न लिखे ललाट के, धीर गहै क्यों न मित्त ॥
भावी लिख्या सु पाइये, बिन भावी कुछ नाहिं ।
‘जगन्नाथ’ बहु पच मरै, प्रापति भावी माहिं ॥
असन बसन तब का दिया, गर्भ पडया जब बिंद ।
‘जगन्नाथ’ घट बढ़ नहीं, जे लिखिया गोबिन्द ॥
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