सोमवार, 11 नवंबर 2013

= ६५ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
आत्म भाई जीव सब, एक पेट परिवार ।
दादू मूल विचारिये, तो दूजा कौन गँवार ॥१८॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! एक ही प्रकृत्ति के द्वारा सबकी रचना हुई है और हे भाई ! आत्म - दृष्टि से सभी जीव एक रूप हैं । हे गंवार ! विषयों के प्रेमी ! जब सबके मूल को विचार कर देखें, तो दूसरा रह ही कहॉं जाता है ॥१८॥ 
(श्री दादूवाणी - दया निर्वैरता का अंग) 
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साभार : Sri Sri Ravi Shankar 
घर क्या होता है? एक ऐसी जगह जहाँ तुम्हें विश्राम मिले | जहाँ तुम अपने स्वभाव में आराम से रहो | मेरे लिए पूरी दुनिया मेरा घर है | मैं जहाँ जाता हूँ, सबसे एक जैसी आत्मीयता महसूस करता हूँ | यह संपूर्ण विश्व मेरा परिवार है, मेरा घर है |

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