गुरुवार, 14 नवंबर 2013

= ७१ =



#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
स्मरण नाम महिमा माहात्म्य 
दादू उज्वल निर्मला, हरि रंग राता होइ। 
काहे दादू पचि मरै, पानी सेती धोइ ||५९|| 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! परमेश्वर के भजन में एक रूप होने से ही यह तन और मन निर्मल होते हैं और ईश्वर भजन को छोड़कर जो तीर्थ, व्रत, आदि सकाम कर्मों से मन को पवित्र करने के प्रयत्न करते हैं, वे व्यर्थ ही पच-पच कर मरते हैं ||५९|| 
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शरीर सरोवर राम जल, माहीं संजम सार ।
दादू सहजैं सब गए, मन के मैल विकार ||६०||
हे जिज्ञासुओ ! मनुष्य का शरीर ही मानो मानसरोवर रूपी तीर्थ है। मानसरोवर में जैसे अमृत तुल्य जल भरा होता है, वैसे ही अन्त: करण में भी मानो निष्काम राम-नाम का स्मरणरूपी जल भरा है और संयम कहिए बाहर के शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, इन पाँचों विषयों से मन और इन्द्रियों को अन्तर्मुख करके अर्थात् राम-नाम में मन लगाना ही मानो स्नान है। सब तीर्थों से यह सार तीर्थ है। इसका स्नान सम्पूर्ण पापों और तापों को शान्त करने वाला है ||६०|| 
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दादू रामनाम जलं कृत्वां, स्नानं सदा जित:। 
तन मन आत्म निर्मलं, पंच - भू पापं गत: ||६१|| 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! प्रभु के नाम-स्मरण को जल समझ करके इन्द्रियों का दमन रूप स्नान करो। जिससे श्रोत्र, नेत्र, घ्राण, जिह्वा, त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, इनसे "भू'' नाम उत्पन्न हुए जो विषय और कामादि विकार उत्पन्न होते हैं, वे पाप "गत:'' कहिए, नष्ट होकर शुद्ध हो जाती है। अथवा पंच भूप यानी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ हरि भजन से अपंगत: अर्थात् निर्जव व निर्वासनिक हो जाती हैं जिससे तन, मन, आत्मा आदि सभी निर्मल हो गये हैं ||६१||
(स्मरण का अंग ~श्री दादूवाणी) 
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साच 
दादू पाणी धोवैं बावरे, मन का मैल न जाइ | 
मन निर्मल तब होइगा, जब हरि के गुण गाइ || ८५ || 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! इस स्थूल शरीर की तीर्थ व्रत आदि में धोने से यह देह और मन, विषय - विकारों से निर्मल नहीं होंगे | किन्तु जब प्रभु का प्रेम से गुण गान करेगा, तब यह मन विषय - वासनाओं से रहित होकर अन्तर्मुख रहेगा || ८५ || 
‘‘अद्भिर्गात्राणि शुद्घयन्ति मन: सत्येन शुद्घयति | 
विद्या - तपोभ्यां भूतात्मा बुद्घिर्ज्ञानेन शुद्घयति || 
(पानी से शरीर, सत्याचरण से मन, विद्यातप से जीवात्मा और ज्ञान से बुद्घि शुद्घ होती है |) 
‘परसा’ वाणी न्हाइ करि पतित न पावन होइ | 
पावन करसी हरि भजन, साखि कहे सब कोइ || 
(मन का अंग ~श्री दादूवाणी)

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