शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

दादू - पाणी मांहीं/ दादू अलख ४/८३-१०३

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/८३-१०३*
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*दादू - पाणी मांहीं पैसिकर, देखे दृष्टि उघार ।*
*जालविम्ब सब भर रहा, ऐसा ब्रह्म विचार ॥८३॥*
प्रसंग कथा - सीकरी नगर में अकबर बादशाह ने दादूजी से प्रश्‍न किया था - आप लोग कहते हैं, ब्रह्मज्ञान होने से जगत ब्रह्म रूप भासने लगता है, यह मेरे समझ में नहीं आ रहा है । आप कृपा करके मुझे किसी दृष्टांत के द्वारा इसे समझाइये । तब दादूजी ने उक्त ८३ की साखी कहकर समझाया था । जैसे जल मैं डूबकी लगाकर दृष्टि खोलकर देखने से जल ही जल दीखता है, वैसे ही ब्रह्मज्ञान में निमग्न होकर ज्ञान द्वारा देखने से सब विश्व ब्रह्मरूप ही भासता है । यह सुनकर अकबर भी संतुष्ट हुआ था ।
दृष्टांत - 
नारद पू़छा विष्णु से, प्रभु मम ब्रह्म दिखाय ।
जाहु समुद्र पास गये, सर कह मम जल पाय ॥१॥
एक समय नारद ने श्रुति में पढ़ा - आत्म(ब्रह्म) ज्ञानी शोक से तर जाता है । मेरे को तो शोक होता है । अतः ब्रह्म साक्षात्कार करावें । 
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ब्रह्मा ने कहा - मैं रजो गुण प्रधान हूं, तुम शंकर के पास जाओ । शंकर के पास जाकर उक्त प्रश्‍न किया तब शंकर ने कहा - मैं तमो गुण प्रधान हूँ । तुम विष्णु के पास जाओ विष्णु के पास जाकर उक्त प्रश्‍न किया तो विष्णु ने कहा - तुम समुद्र के पास जाओ । समुद्र के पास जाकर उक्त प्रश्‍न किया तो समुद्र ने कहा - मुझे प्यास लग रही है । आप मुझे पहले जल पिला दें फिर मैं आपको ब्रह्म का साक्षात्कार करा दूंगा । 
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नारद बोले - आप तो जल रूप ही हैं जल को जल क्या पिला दूं । तब वरुण देव बोले - आप भी तो ब्रह्म स्वरूप ही हैं, ब्रह्म को ब्रह्म का साक्षात्कार क्या करा दूं । शोक तो मन का धर्म है । आत्मज्ञानी अपने को मनरूप नहीं मानता, अतःशोक से तर जाता है । आप भी अपने को मनरूप मान कर ही शोक युक्त समझते हैं । आत्म(ब्रह्म) निष्ठ होने पर तो शौक आप में भी नहीं है । जैसे जल में डुबकी लगाने पर जल ही दीखता है, वैसे ब्रह्म में मन विलीन होने पर ब्रह्म ही भासता है । तब शोकादि कु़छ भी नहीं भासते । नारद समझ गये और आनन्द से वहां से विचर गये ।
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*दादू अलख अल्लाह का, कहु कैसा है नूर ।*
*दादू बेहद हद नहीं, सकल रह्या भर पूर ॥१०३॥*
प्रसंग कथा - सीकरी शहर में वीरबल और अव्वुलफजल ने दादूजी से प्रश्‍न किया था स्वामिन् ! मन इन्द्रियों के अविषय ब्रह्म का स्वरूप कैसा है ? उसी के उत्तर में १०३ से १०६ तक की साखी कही थी । सुन कर उनको संतोष हुआ था ।

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