शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

= प. त./३५-६ =



*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” ३५/३६)* 
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**दो सिद्ध** 
एक समै निधि ध्यान धरैं हरि, 
दादु दयालु लगी इकतारी । 
सिद्ध हु दोय तहाँ चलि आवत, 
देखि हंसे हय दौरत भारी । 
काबुल मांहि हये - युग दौरत, 
यों सुनि ध्यान समाधि - उतारी । 
आप कहें - तुमरा कितहूं चित, 
नीलहि अश्व जु कान अगारी ॥३५॥ 
एक समय श्री दादूजी झील मध्य ध्यान लगा रहे थे, उनकी वृति श्री हरि में एकतार हो रही थी । तभी दो सिद्ध वहाँ आये, और बैठ गये । अपनी सिद्धि से उन दोनों ने काबुल में दौड़ते हुये घोड़ों को देखा, और अपनी दूरदर्शन सिद्धि के गर्व से हंसने लगे । परस्पर कहने लगे - अहो, ये दोनों घोड़े कितने अच्छे दौड रहे हैं । उनके वार्तालाप से श्री दादूजी का ध्यान भंग हो गया, समाधि उतारकर वे बोले - तुम्हारा ध्यान कहाँ है, देखो - नीले अश्व के कान आगे को झुके हुये हैं ॥३५॥ 
दादू कहें ~ कहा दिल दिया, नीलो कान सू आगे कीया । 
**मनोहर - छन्द**
**शिष्य साधु परमानन्द - प्रसंग** 
समझि विचार माँहि वस्तु कछु पाई नांही, 
बाहर भीतर सिद्ध कौनसी भलाई है । 
दोऊ सिद्ध बोले जब, पूर्ण गुरु पाये अब, 
हाथ जोरि नाये शीश, तत्ववस्तु पाई है । 
देखत अचम्भो होत, घट मांहि देखी ज्योति, 
श्रद्धा प्रीति ओत प्रोत, अन्तर लखाई है । 
माधो कहे - दोऊ सिद्ध दादूजी प्रसाद विद्ध, 
होय गलतान ॠद्ध, राम गुण गाई है ॥३६॥ 
स्वामी जी ने सिद्धों को उपदेश दिया - सोच समझकर विचार करो, क्या तत्वसार की वस्तु(श्री हरि के दर्शन) पा लिये हैं ? यदि नहीं पाये हैं तो इन बाहर भीतर की वस्तुओं को देख लेने में कौन सी भलाई है ? इनसे कल्याण नहीं होने वाला । यह सुनकर दोनों सिद्ध बोले - अब तक कोई समर्थ गुरु नहीं मिला था । आज पूर्ण सिद्ध गुरुदेव के दर्शन हुये हैं । हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि तत्व वस्तु के दर्शन कराइये । तब श्री दादूजी की कृपा से दोनों ने अपने अन्त:करण में श्रीहरि की दिव्य ज्योति के दर्शन पाये, श्रद्धा प्रीति से दोनों ओत - प्रोत हो गये । 
माधवदास वर्णन करते हैं कि - दो सिद्धों ने भी दादूजी का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया । स्वामजी के शब्दबाण उन्हें बींध गये । दिव्य ज्योति के दर्शन से गद्गद होकर परम ॠषि को पा गये । परमानन्द में निमग्न हो जाने से वे परमानन्द कहलाये ।(परमानन्द सरस्वती और सदातीर्थ सरस्वती, दोनों दादूपंथी साधु बनकर नागौर जिले के इन्दोखली ग्राम में आश्रम बनाकर भजन करने लगे ॥३६॥ 
(क्रमशः)

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